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विदेशी दानकर्ता और निवेशकों की भूमिका

भाग 3

8 March 2020

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भारत सरकार वित्तीय सेवा क्षेत्रों में विभिन्न मात्रा में निवेश की अनुमति देता है इसे ध्यान में रखते हुए विदेशी दानकर्ताओं और निवेशकों की भूमिका क्या हैं?

ग्लोबल ग्राउंड मिडिया ने आत्महत्या करनेवाले किसानों के जिन परिवारों से मुलाकात की हैं उनमें से कई किसानों ने डीसीसी बैंकों से ऋण लिया था – यवतमाल के डीसीसी बैंकों में से 12 और अकोला के दो डीसीसी बैंक्स – और इस ऋण की राशि 45,000 रुपयों (636 अमरीकी डॉलर्स) से लेकर 100,000 (1414 अमरीकी डॉलर्स) से अधिक थी।

पांच लोगों ने सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया से ऋण लिया था, जिसमें औसत ऋण की राशी थी 95,000 रुपयें (1337 अमरीकी डॉलर्स) थी और तीन लोगों ने बैंक ऑफ महाराष्ट्र से ऋण लिया था, जिसमें औसत ऋण की राशी थी लगभग 119,000 रुपयें (1675 अमरीकी डॉलर्स) थी। दोनों भी सार्वजनिक क्षेत्रीय बैंक्स हैं।

दो लोगों ने महिंद्रा फाइनांस, एनबीएफसी से (औसत 120,000 रुपयों या 1689 अमरीकी डॉलर्स का ऋण) और भारत फाइनांशियल इनक्लूजन लिमिटेड, एनबीएफसी-एमएफआई से (औसत 15,000 रुपयों या 211 अमरीकी डॉलर्स) का ऋण लिया था। ज्यादातर मामलों में, किसानों ने एक से अधिक स्त्रोतों से ऋण लिया था।

शेष ऋण अन्य सार्वजनिक क्षेत्रों और निजी क्षेत्र के बैंकों और एनबीएफसी से लिए गए थे।

डीसीसी बैंक्स

डीसीसी बैंक्स देश की ग्रामीण सहकारी ऋण संरचना का हिस्सा हैं। जमा की जानेवाली राशियां डीसीसी बैंकों के मुख्य आधारभूत संसाधन हैं, जो नैशनल बैंक ऑफ एग्रीकल्चर एंड रुलर डेवलपमेंट (नाबार्ड) और राज्य सहकारी बैंकों के माध्यम से ऋण देकर, उधार देने के माध्यम से निधी जमा करती हैंविकास वित्तीय संस्था, नाबार्ड डीसीसी बैंकों को वित्तीय पुनर्गठन सेवाएं और अन्य वित्तीय सहायता भी प्रदान करती हैं।

नाबार्ड 100 प्रतिशत भारत सरकार के अधिकार में हैं। लेकिन, नाबार्ड के ‘बाह्य सहायता प्राप्त परियोजनाएं’ जर्मन विकास बैंक केएफडब्ल्यू, जर्मन विकास एजेंसी जीआईझेड और अंतर्राष्ट्रीय बैंक फॉर रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट (आईबीआरडी) और एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) जैसी बहुपक्षीय विकास एजेंसियों से वित्तीय और अन्य सहायता प्राप्त करते हैं। स्विस डेवलपमेंट कॉऑपरेशन, विश्व बैंक, यूरोपियन यूनियन और जर्मन डेवलपमेंट कोऑपरेशन ये कुछ अन्य अंतर्राष्ट्रीय एजंसियां हैं जो नाबार्ड को निधि और अनुदान प्रदान करती हैं।

2006 में, भारत सरकार ने देश के ग्रामीण सहकारी ऋण संरचना (एससीबी, डीसीसी बैंक्स और पीएसी) के पुनर्जीवन और सुधार के लिए एक कार्यक्रम का आरंभ किया, ताकि ग्रामीण परिवारों को किफायती वित्त उपलब्ध कराया जा सकें।

आंध्रप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान, इन पांच राज्यों में कार्यक्रम के कार्यान्वयन के भागीदार के रूप में नाबार्ड के साथ विश्व बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक, केएफडब्ल्यू और जीआईझेड जैसे वित्तीय भागीदारों को शामिल किया गया।

विश्व बैंक ने लगभग 4170 लाख अमरीकी डॉलर्स की राशी का ऋण और उधार सुपुर्द किया, केएफडब्ल्यू ने 1330 लाख यूरो (1450 लाख अमरीकी डॉलर्स) की राशी और एडीबी ने 1 अरब अमरीकी डॉलर्स का ऋण सुपुर्द किया। भारत सरकार ने अपनी खुद की निधी के समाप्त होने पर, 2012 में इस कार्यक्रम को बंद कर दिया था।

एडीबी ने इस कार्यक्रम के मुल्यांकन में इसे बहुत कम प्रभावी बताया। “एससीबी और डीसीसीबी ने अपने संचालन के कार्यक्षमता में कोई सुधार नहीं दिखाया हैं, उनकी पूंजी हमेशा कम रही हैं और लाभदायिकता में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ हैं,” ऐसा मुल्यांकन रिपोर्ट का मानना हैं।

केएफडब्ल्यू के मुल्यांकन में कहा गया था की डीसीसीबी अपने लक्ष्य के अनुसार अपने एनपीए के स्तर को आधे से कम नहीं कर पाई थी और न ही अपने लक्षित वृद्धि दर को प्राप्त कर सकीं थी। छह अंकों के पैमाने पर, इसने परियोजना को 4 स्तर की रेटिंग या असंतोषजनक परिणाम के रूप में मुल्यांकन किया था, जिस वजह से स्पष्ट सकारात्मक परिणामों के बावजूद नकारात्मक परिणाम हावी थे।

विश्व बैंक इस कार्यक्रम का मुल्यांकन मध्यम रूप से संतोषजनक बताया था।

दिलचस्प बात यह है कि, 2014 में, भारत सरकार ने उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, जम्मू और कश्मीर और पश्चिम बंगाल में जो डीसीसी बैंक्स अपने पूंजी और जोखिमयोग्य संपत्ति के आनुपातिक लक्ष्यों को पूरा करने में असमर्थ थे ऐसे बिना लाईसेंस वाले 23 डीसीसी बैंकों के पुनर्जीवन के लिए 237500 लाख रुपयों के पॅकेज की घोषणा की। नाबार्ड ने इस केंद्र सरकार, राज्य सरकार और नाबार्ड के योगदान वाली सरकारी योजना का करार दिया। विदेशी दानकर्ताओं का कोई उल्लेख नहीं किया गया है।

सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया और बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र

आत्महत्या किए हुए किसानों के रिश्तेदारों के साथ ग्लोबल ग्राऊंड मिडिया ने किए हुए मुलाकात के अनुसार, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और बैंक ऑफ महाराष्ट्र जैसी सार्वजनिक क्षेत्र बैंक्स भी किसानों को ऋण प्राप्त करने के मुख्य स्त्रोत थे।

सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के मामले में, भारत सरकार के पास लगभग 91 प्रतिशत शेअर्स हैं और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (या एफआईआईज) के पास 0.24% शेअर्स हैं। बैंक ऑफ महाराष्ट्र में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (या एफआईआईज) के 0.10 प्रतिशत शेअर्स हैं और 87 प्रतिशत शेअर्स भारत सरकार के पास हैं।

गरीबों को बैंक से ऋण उपलब्ध कराने के उद्देश्य से, नाबार्ड द्वारा शुरू किए हुए स्वयं सहायता समूह बैंक जोड़ने के कार्यक्रम के तहत, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और बैंक ऑफ महाराष्ट्र दोनों ही स्वयं सहायता समूहों (एसएचजीज) को माइक्रोफाइनांस क्रेडिट देते हैं।

सरकार द्वारा एसएचजी बैंक जोड़ने के कार्यक्रम को बढ़ावा देना का एक तरीका राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका योजना (डीएवाई-एनआरएलएम) भी हैं, जिसका नाम बदलकर दीनदयाल अन्त्योदय योजना (डीएवाई-एनआरएलएम) रखा गया हैं। डीएवाई-एनआरएलएम के तहत ऋण देनेवाली संस्थाओं में बैंकों की अहम भूमिका हैं।

इस योजना में विश्व बैंक ने भी कुछ सहायता प्रदान की है। 2011 में, विश्व बैंक ने इस योजना के लिए 1 अरब अमरीकी डॉलर्स का ऋण प्रदान किया, जिसका मुख्य उद्देश्य एसएचजी को जुटाना और बढ़ावा देना था। मार्च 2019 में, महिलाओं द्वारा की जानेवाली खेती और गैर-कृषि उद्योगों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इसने डीएवाई-एनआरएलएम को 2500 लाख अमरीकी डॉलर्स का अतिरिक्त ऋण भी प्रदान किया।

अप्रैल-ऑक्टोबर 2019 की अवधि के दौरान, डीएवाई-एनआरएलएम के तहत, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया ने इससे जुड़े 11,8520 एसएचजी में 192600 लाख रुपयों (2680 लाख अमरीकी डॉलर्स) का वितरण किया और बैंक ऑफ महाराष्ट्र ने इससे जुड़े 12,292 एसएचजी में 15538 लाख रुपयों (210 लाख अमरीकी डॉलर्स) का वितरण किया।

विश्व बैंक ने ग्लोबल ग्राउंड मिडिया के हर इमेल में कहा, “भारत में कई वर्षों से ग्रामीण वित्तीय संकट गंभीर चिंता क विषय बना हुआ है। चूंकि ग्रामीण आय में गैर-कृषि स्त्रोतों से बहुत अधिक हिस्सा प्राप्त होता हैं, इसलिए गैर-कृषि आजीविका और छोटी-खुदरा बिक्री, खाद्य प्राद्योगिकी, खाद्य पदार्थ बेचना जैसे उद्यम अवसर, और कौशल प्रशिक्षण तथा नौकरी दिलवाना, आदि को सक्षम करने में ऋण की प्राप्ति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत में विश्व बैंक के समूह (डब्ल्यूबीजी) ने कई दशकों से देश के वित्तीय समावेशन में सुधार लाने के उद्देश से कई उपक्रमों को समर्थन दिया है। […] विश्व बैंक समूह का निजी क्षेत्र, अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (आईएफसी) भारत में समर्थ, जिम्मेदार और स्थायी माइक्रोफाइनांस क्षेत्र विकसित करने के लिए निजी क्षेत्र के प्रमुख वित्तीय संस्थाओं के साथ काम कर रहा है और वर्तमान में इसकी पहुंच 300 लाख ग्राहकों तक हैं।”

बैंक ऑफ महाराष्ट्र और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया ने टिप्पणी के लिए कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

महिंद्रा फाइनांस

किसानों ने महिंद्रा फाइनांस जैसे एनबीएफसी से भी ऋण लिया था, जिसमें विदेशी संस्थागत निवेशकों का कंपनी के स्वामित्व में 26.77 प्रतिशत हिस्सा था। निवेशकों के मिटींग्स के रेकोर्ड्स के अनुसार, कंपनी के विदेशी निवेशकों में यूके स्थित एचएसबीसी और यूएस स्थित मॉर्गन स्टैनली शामिल हैं – दोनों भी निवेशक बैंक और वित्तीय सेवा कंपनियां हैं। एचएसबीसी और मॉर्गन स्टैनली ने टिप्पणी के लिए कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

2018 में, वर्ल्ड बैंक के सदस्य और विकास वित्तीय संस्था, अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (आईएफसी) ने महिंद्रा फाइनांस में 6.4 अरब रुपयों (1000 लाख अमरीकी डॉलर्स) का निवेश किया, जिसने एक बयान में कहा था कि इस ऋण से कंपनी को “किसानों सहित व्यक्तियों को ट्रैक्टर्स, वाहनों और अन्य उपकरणों के खरीदने के लिए, और छोटे एवं मध्यम उद्यमों का वित्तपोषण करने के लिए ऋण प्रदान करने में मदद मिलेगी।”

हालांकि भारतीय कृषि संकट में विदेशी दानकर्ता भी भूमिका निभाते हैं, लेकिन विकास अर्थशास्त्री कर्कदा नागराज का कहना है कि किसानों की आत्महत्या भुत जटिल समस्या है जिसे एक-करणीय स्पष्टीकरण से समझाया नहीं जा सकता।

“समय के साथ संचित होनेवाले कई कारकों के संयोजन के कारण किसान आत्महत्या जैसे कठोर, चरम मार्ग को चुनते हैं। किसी एक कारण को ‘अंतिम कारण’ ठहराना, जिसने उनका हौसला पूरी तरह से तोड़ दिया, उसे आत्महत्या का कारण बताना एकतरफा होगा। यही बात कर्ज का बोझ, मूल्य में गिरावट या फसल नष्ट होना जैसे प्रमुख कारकों के लिए भी लागू होती हैं,” ऐसा उन्होंने इमेल में लिखा।

फिर भी, महाराष्ट्र में किसानों के आत्महत्या की बढ़ती संख्या के चलते, किसानों को ऋण उपलब्ध कराने का महत्वपूर्ण कार्य करनेवाले विभिन्न उधारकर्ताओं की भूमिका की जांच की जानी चाहिए।

If you need help or know someone who does, please reach out now through a suicide hotline near you.

Article by Urvashi Sarkar.
Editing by Mike Tatarski and Anrike Visser.
Fieldwork by Varsha Torgalkar.
Research by Peter Allen Clark.
Picture by Abhaya Gupta.
Illustrations by Imad Gebrayel.

This article was developed with the support of the Money Trail Project (www.money-trail.org).

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