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विभिन्न स्त्रोंतों से लिए हुए ऋण का पहाड़ ने यवतमाल के बोथबोडन गांव के नारायण शेलके और जंगलु शेलके इन भाइयों ने क्रमानुसार 2014 और 2018 में आत्महत्या करने पर मजबूर किया ऐसा उनके परिवार का कहना है। उन दोनों की मिलाकर चार एकड़ भूमि थी, जहां लिए जानेवाली फसलें, खास तौर पर कपास और सोयाबीन, लगातार होनेवाले ओला-वृष्टि और सूखे से खराब हो रही थी।
नारायण के भतीजे कवाडू शेलके ने कहा, “[यवतमाल के] डीसीसी बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया से लिए 50,000 रूपये (706 अमरीकी डॉलर्स) के ऋण को वे [नारायण] चूका नहीं पा रहे थे। बैंक के अधिकारियों ने उनके घर पर जाकर उन्हें ऋण चुकाने के लिए कहा था। अपमानित होकर और बैंक उनके जमीन पर कब्जा कर लेगी इस डर से उसने आत्महत्या कर ली।”
नारायण और जंगलू शेलके यह भाई, फसल खराब होने के कारण कर्ज लौटाया नही और उन्होने अपना जीवन समाप्त किया (२१ जूलाई २०१९, बोथबोडन, यवतमाल जिला)
नारायण के भाई और कवाडू के पिता, 65 वर्षीय जंगलु ने भी सितंबर 2018 में आत्महत्या कर ली, क्योंकि फसल खराब की परेशानी और यवतमाल के डीसीसी बैंक और पंजाब नैशनल बैंक के 40,000 रूपये (565 अमरीकी डॉलर्स) साथ ही आंध्र बैंक के 35,000 रूपये (494 अमरीकी डॉलर्स) के ऋण का पहाड़ चुकाने में वे असमर्थ थे। यवतमाल डीसीसी बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नैशनल बैंक और आंध्र बैंक ने इस पर कोई भी टिप्पणी नहीं दी।
ऋण के स्त्रोत
सितंबर 2019 के आरबीआई के रिपोर्ट के अनुसार, अनुसूचित वाणिज्य बैंक 70 से 80 प्रतिशत कृषि ऋण प्रदान करते हैं। मार्च 2017 तक, राज्य सहकारी बैंक्स (एसटीसीबी), क्षेत्रीय डीसीसी बैंक्स और प्राथमिक कृषि ऋण सहकारी समितियों (पीएसीएस) जैसी सहकारी संस्थाएं कृषि ऋण में 15 से 16 प्रतिशत ऋण का योगदान दिया हैं। महाराष्ट्र में, कृषि ऋण में सहकारी समितियों का योगदान 31 प्रतिशत जितना अधिक था।
इसी रिपोर्ट के अनुसार, एनबीएफसी-एमएफआईज (नॉन-बैंकिंग फाइनांस कंपनी – माइक्रोफाइनांस संस्थाओं) ने भी कृषि ऋण में योगदान दिया है। 2013-2019 के बीच, बैंको से एनबीएफसी-एमएफआईज के ऋण के रूप में एनबीएफसी-एमएफआईज की संख्या को प्राथमिकता क्षेत्र ऋण के रूप में लायक बनाया और एनबीएफसी-एमएफआईज को विनियमित करनेवाले आरबीआई के दिशनिर्देशों का कारण बना। आरबीआई ने यह भी कहा कि एमएफआई न्यूनतम 50 प्रतिशत ऋण आय निर्माण की गतिविधियां के लिए देगा, जो एमएफआईज ने कृषि, पशुपालन और व्यापार के लिए दिया है। उद्योग संघ एमएफआईज के डेटा के अनुसार मार्च 2019 में, एनबीएफसी-एमएफआईज कृषि ऋण सकल ऋण पोर्टफोलियो के 57 प्रतिशत था।
बुलढाना जिले के देवपुर गांव के 65 वर्षीय सुखदेव सोनपत नरोटे ने खुद को पेड़ से लटका लिया। सुखदेव जी को पांच एकड़ की खेती की जमीन पर बैंक से ऋण नहीं मिला और इसके बजाय उन्होंने महिंद्रा फाइनांस, एनबीएफसी, और रिश्तेदारों से 140,000 रुपयों (1977 अमेरिकन डॉलर्स) का होम लोन लिया। पिछले दो वर्षों से बारिश के कमी के कारण दुसरे किसानों की तरह उनकी सोयाबीन की फसल भी खराब हो गयी थी।
नरोटे के बेटे विश्वनाथ के अनुसार, भले ही महिंद्रा फाइनांस से ऋण उनके पिता ने लिया था पर वह ऋण उनके भाई संदीप के नाम पर था। “कंपनी के एजंटों ने गिरवी रखने के लिए हमारे घर के संपत्ति के कागजात ले लिए थे। हमें अगले पांच वर्षों तक हर छह महीनों में 25,000 रूपये (353 अमेरिकन डॉलर्स) का भुगतान करना होगा। लेकिन हमें लोन कार्ड नहीं मिला हैं।” ऐसा उन्होंने कहा महिंद्रा फाइनांस ने टिप्पणी के लिए कई बार अनुरोध करने पर भी कोई जवाब नहीं दिया।
नरोटे जैसे व्यक्तियों को बैंक से ऋण बहुत मुश्किल से मिलते हैं। किसान हमेशा कुछ गिरवी नहीं रख सकतें, वे अलाभकारी रूप से निर्वाह के लिए कृषि करते हैं या बैंक उन्हें ऋण देने के योग्य नहीं समझतें। इस वजह से किसानों के परिवार एनबीएफसी-एमएफआईज, वित्तीय कंपनियां, वित्तीय निगमों, भविष्य निर्वाह निधि, बीमा, रिश्तेदारों, दोस्तों, साहूकारों और उधारकर्ताओं से ऋण लेने पर मजबूर हो जाते हैं।
निजी उधारकर्ताओं ने अकोला जिले के घुसर गांव के, 50 वर्षीय रमेश गोफनारायण का जीना मुश्किल कर दिया था ऐसा उनके पुत्र नितिन का कहना है। “जिन निजी उधारकर्ताओं से उन्होंने ऋण लिया था वे बार-बार आकर पैसे के भुगतान के लिए मांग करते थे। इससे वह अपमानित हुए थे। वे दुःखी थे। लेकिन हमें जरा भी अंदाजा नहीं था कि वे ऐसा कदम उठाएंगे।” नितिन को इस बात की जानकारी नहीं हैं कि उनके पिता का उधारकर्ताओं के पास कितना कृषि कर्ज बाकी हैं। रमेश जी पर अकोला के डीसीसी बैंक का भी 50,000 रुपयों (706 अमरीकी डॉलर्स) का ऋण हैं जो उनकी आत्महत्या के बाद माफ नहीं किया जा सकता, और जिसका भुगतान अभी उनका परिवार कर रहा हैं।
कर्जमाफी – कोई प्रभाव नहीं?
महाराष्ट्र सरकार ने 2017 के राज्य में होनेवाले चुनावों से पहले किसानों की पीड़ा को कम करने के इरादे से 34,00,000 लाख रुपयों (4 अरब अमरीकी डॉलर्स से अधिक) के ऋण को माफ़ करने की घोषणा की थी। लेकिन आत्महत्याएं जारी रहीं, और घाडगे द्वारा दर्ज किए हुए आरटीआई के अनुसार 4500 किसानों ने कर्जमाफी की घोषणा के बाद आत्महत्या की हैं। दूसरी ओर, घाडगे के आरटीआई के प्रश्नों के जवाब देते हुए महाराष्ट्र राज्य के राजस्व विभाग ने बताया कि, मुआवजे के दावों को ख़ारिज किए जाने के कारण आत्महत्या करनेवाले किसानों के परिवारों को 100,000 रुपयों (1412 अमरीकी डॉलर्स) तक मुआवजा देने से इनकार किया जा रहा हैं।
कृषि ऋण की समीक्षा करनेवाले आरबीआई के आंतरिक समूह की सितंबर 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, चुनाव के दौरान कर्जमाफी की घोषणाएं राजनितिक मुनाफा दर्शाती हैं और खेती के दीर्घकालीन समस्याओं पर चर्चा नहीं करती। बैंकों में गैर-क्रियाशील संपत्तियों (एनपीए) का स्तर उन राज्यों में भी बढ़ा हैं जहां कर्जमाफी की घोषणा की गई थी, जिनमें महाराष्ट्र भी शामिल है जिसका 2017-2018 में एनपीए का स्तर उच्चतम था।
हालांकि, 2019 की इंडिया की स्पेंड रिपोर्ट के अनुसार भारत के सबसे बड़े 10 कॉर्पोरेट कर्जदार, जिनमें रिलायंसएडीएजी, वेदांता, एस्सार, अदानी और जेपी ग्रुप भी शामिल हैं, इनका कुल ऋण 2017 से फरवरी 2019 तक 10 राज्यों के सरकार द्वारा घोषित कर्जमाफी की तुलना में चार गुना अधिक था। दिसंबर 2019 में एक और कर्जमाफी की घोषणा की गयी थी।
संस्थागत ऋण और डीसीसीबी बैंक्स
राज्य अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एससीआरबी), पुणे के आपराधिक जांच विभाग की ग्लोबल ग्राउंड मिडिया द्वारा इस्तेमाल की हुई जानकारी के अनुसार, 2015 में बैंको या पंजीकृत एमएफआईज के ऋण के कारण हुई आत्महत्याओं की संख्या अमरावती में 224, यवतमाल में 183, वर्धा में १४२, बुलढाना में 86 और वाशिम 62 थी।
ग्लोबल ग्राउंड मिडिया द्वारा अमरावती क्षेत्र में आत्महत्या करनेवाले 40 किसानों के परिवारों के साथ बातचीत करने पर यह पता चलता है कि कम से कम 12 उदाहरण ऐसे थे जिन्होंने क्षेत्रीय डीसीसी बैंक से ऋण लिया था।
महाराष्ट्र सहित, भारत में ग्रामीण संस्थागत ऋण राज्य सहकारी बैंक्स, डीसीसी बैंक्स और प्राथमिक कृषि ऋण सहकारी समितियों (पीएसीएस) के माध्यम से वितरित किए जाते हैं। 2016-2017 में, क्रियाशील लाभ और शुद्ध लाभ दोनों के संदर्भ में डीसीसी बैंकों की लाभदायिकता कम हुई हैं।
इंडियन एक्प्रेस द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, 2015 में महाराष्ट्र के जिन जिलों में सबसे ज्यादा आत्महत्याएं हुई हैं वहां पर डीसीसी बैंकों के एनपीए के स्तर भी उच्चतम थे। इसीलिए, किसानों की आत्महत्याओं की सबसे अधिक संख्या (383) यवतमाल जिले में दर्ज की गई थी, जहां डीसीसीबी के एनपीए का स्तर 38.02 प्रतिशत था। अमरावती में 306 किसानों की आत्महत्याओं को दर्ज किया गया जहां पर डीसीसी बैंकों के एनपीए का स्तर 25.38 प्रतिशत था। बुलढाना में 189 किसानों की आत्महत्याओं को दर्ज किया गया जिस जिले में डीसीसीबी के एनपीए का स्तर 85.74 प्रतिशत था।
उच्च एनपीए स्तरों का एक परिणाम यह भी था कि बैकों के मैनेजरों पर ऋण के वसूली का दबाव बढ़ने लगा।
प्राध्यापक रामकुमार जी ने ग्लोबल ग्राउंड मिडिया को बताया: “ सहकारी बैंकों के बॉटम लाइन पर असर हो रहा हैं, इसलिए वे ग्राहकों पर अधिक दबाव डाल सकते हैं। निचले स्तर के बैंक मैनेजरों को जैसे कि शाखा स्तर और क्षेत्र, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर के मैनेजरों को भी अपने मुख्य कार्यालय में रिपोर्ट देना पड़ता हैं और बकाया राशि वसूल की गई हैं यह दर्शाना पड़ता हैं। वे पुनर्भुगतान के दार बढ़ाते हैं और लागू करते हैं, जो किसानों को उत्पीड़न लग सकता हैं। जैसे उधारकर्ता कर्जदारों पर भुगतान के लिए दबाव डालते हैं, वैसे ही वाणिज्यिक और बैंक भी दबाव डालते हैं। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं हैं कि किसानों की आत्महत्याएं औपचारिक बैंकिंग संस्थाओं से जुड़ी हैं।”
प्राध्यापक रामकुमार जी ने एक ऐसे झुकाव की ओर भी इशारा किया हैं वाणिज्यिक बैंक्स बाहरी एजंसियों और एजंटों को उधारकर्ताओं से ऋण वसूल करने के लिए संपर्क करता हैं। “इस तरह के मामलों में, बैंक उधारकर्ता से संपर्क नहीं करती हैं – एजंसियां करती हैं। इस तरह की आउटसोर्सिंग बड़े पैमाने पर हो रही हैं, खास कर वाणिज्यिक बैंकों में।”
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Article by Urvashi Sarkar.
Editing by Mike Tatarski and Anrike Visser.
Fieldwork by Varsha Torgalkar.
Research by Peter Allen Clark.
Picture by Abhaya Gupta.
Illustrations by Imad Gebrayel.
This article was developed with the support of the Money Trail Project (www.money-trail.org).
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