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शंकर भाऊराव चयारे ने अपने पीछे सिलवटों और झुर्रियों से भरे हुए कागज पर लिखी आत्महत्या की चिठ्ठी छोड़ी थी जो स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि वह कई दिनों से आत्महत्या करने के बारे में सोच रहे थे। 14 अप्रैल, 2018 में, यवतमाल जिले के राजुरवाडी गांव के 50 वर्षीय किसान की जहर खाने से मौत हुई थी।
चयारे नौ एकड़ जमीन के मालिक थे जिस पर वे कपास और सोयाबीन की खेती करते थे – 2014-2016 और 2019 में पड़े सूखे के कारण दोनों फसलों में नुकसान हुआ था। चयारे ने यवतमाल जिला सहकारी केंद्रीय बैंक (डीसीसीबी) से 1,00,000 रूपयों (1412 अमरीकी डॉलर्स) का ऋण लिया था और रिश्तेदारों से 70,000 रुपयों (988 अमरीकी डॉलर्स) का उधार लिया था। उनकी आत्महत्या के बाद बैंक ने उनका ऋण माफ़ कर दिया।
उनकी पत्नी अलका जी ने ग्लोबल ग्राउंड मीडिया से कहा: “उनके झुर्रियों से भरे आत्महत्या की चिठ्ठी से पता चलता है कि वे कई दिनों से आत्महत्या के बारे में सोच रहे थे। वे शायद बहुत उदास होंगे लेकिन अपने परिवार को इस बारे में बता नहीं सकते थे। ”
शंकर चयारे इन्होने जहर लेके अपना जीवन समाप्त किया, उनके परिवार के अनुसार उनके ९ एकड खेती पर १००००० रुपये का कर्ज लौटाने मे असमर्थ होने के कारण उन्होने ऐसा किया| उन्होने अपने पीछे आत्महत्या की चिट्ठी छोडी जीन्मे उन्होने अपने आत्महत्या (२० जुलाई २०१९, राजूरवाडी, यवतमाल जिला) के लिये मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराया|
अलका जी, जो अब खेती करती हैं, उन्हें ऋण के ब्याज दरों के बारे में या चयारे किसी ऋण को चूका सकते हैं या नहीं इसके बारे में कोई भी जानकारी नहीं हैं। उन्हें महाराष्ट्र सरकार की तरफ से – आत्महत्या करनेवाले किसानों के परिवार के रूप में – 1,00,000 रूपयों (1412 अमरीकी डॉलर्स) का अनुग्रहपूर्वक मुआवजा मिला।
इसी तरह, एक परिवार के सदस्यों अनुसार बैंक और निजी उधारकर्ताओं से लिए हुए कई तरह के ऋण की वजह से यवतमाल जिले के बोथबोडन गांव के पिता और पुत्र ने कुछ ही महीनों के अवधि में आत्महत्या की थी। 50 वर्षीय पिता, चरण दगडू राठोड जी ने 30 जनवरी 2017 में जहर खाकर आत्महत्या की थी। और उनके पुत्र लहू दगडू राठोड, जो केवल 23 वर्ष के थे, उनकी भी 24 मार्च को जहर खाने की वजह से मृत्यु हुई थी।
चरण राठोड के दुसरे पुत्र, अंकुश जो खुद भी एक किसान हैं, उन्होंने जानकारी दी कि निजी उधारकर्ता उनके पिता को बार-बार धमकाते थे, जिनके पास 5 एकड़ जमीन थी। “सूखे के कारण उनकी फसल में उन्हें नुकसान हुआ था। मेरे पिताजी ने यवतमाल के डीसीसी बैंक से 70,000 रुपयों (988 अमरीकी डॉलर्स) से अधिक और तीन निजी उधारकर्ताओं से 1,50,000 रुपयों (2119 अमरीकी डॉलर्स) से अधिक का ऋण लिया था, जो 20 से 30 प्रतिशत तक ब्याज दर लेते थे। निजी उधारकर्ताओं ने उन्हें उनकी खेती की जमीन और जिस जमीन पर उनका घर बना हुआ था उस जमीन पर कब्जा करने की धमकी दी थी। ऐसी ही एक धमकी की वजह से उन्होंने जहर खा लिया।”
अंकुश अपने भाई लहू के आत्महत्या के बारे में बताते है: “बड़े भाई होने के नाते, लहू को लगा कि उनके पिता के ऋणों को चुकाने और परिवार की देखभाल करने की जिम्मेदारी उनकी हैं। वो सिर्फ 23 वर्ष के था। इस दबाव में आकर उसने आत्महत्या कर ली।”
राज्य सरकार ने परिवार को मुआवजे की तोर पर 1,00,000 रूपये (1412 अमरीकी डॉलर्स) दिए और यवतमाल के डीसीसी बैंक के 70,000 रुपयों (988 अमरीकी डॉलर्स) के ऋण को भी माफ कर दिया गया। लेकिन लहू की आत्महत्या का कोई मुआवजा नहीं मिला क्योंकि जमीन उनके पिता के नाम पर थी।
उनके पिताजी चरण राठोड के मृत्यूपश्चात २ महिने बाद, लहू राठोड इन्होने जहर लेके अपना जीवन समाप्त किया. अपने पिताजी के रुपये ६४००० कर्ज मे उन्होने २५०००० रुपये का व्यक्तिगत कर्ज लिया. आज, अंकुश जो उनका भाई ही उनको बची हुई धनराशी को लौटाना है ( २१ जून २०१९, बोथबोडन, यवतमाल जिला)
ऋणग्रस्तता और आत्महत्या
उपर बताई गई आत्महत्याएं वास्तविक संख्या की अल्प मात्रा दर्शाती हैं। जुलाई 2019 में, अमरावती क्षेत्र में जिन किसानों ने आत्महत्या की थी उनके परिवारों के साथ ग्लोबल ग्राउंड मिडिया ने बातचीत की जिससे यह पता चलता है कि लगातार फसल – खास तौर पर कपास और सोयाबीन की फसल – खराब होने की वजह से, सुखा पड़ने तथा अनेक जगहों से लिए ऋण को चुकाने में असफल होने की वजह से किसानों के आत्महत्या की थी।
कार्यकर्ता जीतेंद्र घाडगे द्वारा दर्ज किए हुए सुचना के अधिकार (आरटीआई) से पता चला है कि जनवरी 2015 से 2018 के अंत तक महाराष्ट्र में 11,995 किसानों ने आत्महत्या की हैं – जो इसके पहले के तीन सालों की अवधि से 91 प्रतिशत तक अधिक है। 36.5 प्रतिशत या 4384 आत्महत्याएं केवल महाराष्ट्र के अमरावती क्षेत्र में हुई हैं जिसमें अकोला, यवतमाल, बुलढाना और वाशिम जिले शामिल हैं।
इसी दौरान, 2015 के लिए राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा आकस्मिक दुर्घटना से हुई मृत्यु और आत्महत्याओं के प्रकाशित पिछले डेटा यह दर्शाता है कि किसानों / खेती करनेवालों में ‘दिवालियापन या ऋणग्रस्तता’ आत्महत्या के प्रमुख कारण थे। महाराष्ट्र में दिवालियापन या ऋणग्रस्तता के वजह से आत्महत्या करनेवालों की संख्या सबसे ज्यादा थी – सभी आत्महत्याओं में से 1293 आत्महत्याएं या 42.7 आत्महत्याएं महाराष्ट्र में हुई हैं।
कुल मिलाकर, एनसीआरबी का डेटा दर्शाता है कि दिवालियापन या ऋणग्रस्तता के वजह से 3097 किसानों ने आत्महत्या की हैं। इनमें से, 80 प्रतिशत या 2474 किसानों/खेती करनेवालों पर बैंकों/पंजीकृत माइक्रोफाइनांस संस्थाओं (एमएफआईज) का ऋण था। 302 किसानों पर उधारकर्ताओं का ऋण था और आत्महत्या किए हुए 321 किसानों ने वित्तीय संस्थाओं और उधारकर्ताओं या गैर-वित्तीय संस्थाओं से ऋण लिया था।
वित्तीय संस्थाओं और गैर-वित्तीय संस्थाओं/उधारकर्ताओं से ऋण लेकर दिवालिया या ऋणग्रस्त होने पर आत्महत्या करनेवाले खेती में काम करनेवाले मजदूर क्रमानुसार 155 और 100 थे।
एनसीआरबी ने किसानों/ खेती करनेवालों की परिभाषा इस प्रकार की है – जो खेती में काम करनेवाले मजदूरों की सहायता के साथ या बिना किसी सहायता के खुद की जमीन पर खेती करते हैं जबकि खेती में काम करनेवाले मजदुर वे हैं जो जिनकी मुख्य आय खेती में श्रमिक गतिविधियां करने से प्राप्त होती है।
2016 के बाद आकस्मिक दुर्घटना से हुई मृत्यु और आत्महत्याओं पर एनसीआरबी का डेटा प्रकाशित नहीं हुआ है। हाल ही में प्रकाशित किए गए 2016 के एनसीआरबी डेटा में 11,379 किसानों की आत्महत्याओं का उल्लेख किया गया हैं; जो 2015 के 12,602 मामलों की तुलना में 9.7 प्रतिशत कम है। 2015 के विपरीत, 2016 के आंकड़े हर राज्य में किसानों की आत्महत्याओं की संख्या नहीं दिखाते हैं।
नाबार्ड अखिल भारतीय ग्रामीण वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण 2016-17 के अनुसार 2015-16 में संस्थागत ऋण लेकर 60.5 प्रतिशत कृषि परिवारों में संस्थागत स्त्रोतों को अधिक पसंद किया गया। इस तरह के परिवारों में से 30.3 प्रतिशत परिवारों ने रिश्तेदारों और दोस्तों, उधारकर्ताओं और साहूकारों जैसे गैर-संस्थागत स्त्रोतों से ऋण लिया जबकि 9.2 लोगों ने संस्थागत और गैर-संस्थागत दोनों स्त्रोतों से ऋण लिया था।
टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल सायन्सेस के कृषि अर्थशास्त्री, प्राध्यापक आर. रामकुमार कहते हैं: “यह कृषि संकट बढ़ता जा रहा है और विभिन्न वर्गों, जातियों के और विभिन्न फसल लेनेवाले किसानों को भी अपने चपेट में ले रहा हैं। उन्होंने कई स्त्रोतों से ऋण लिए हुए हैं। अक्सर एक स्त्रोत से लिए ऋण को चुकाने के लिए दूसरा ऋण लिया जाता है। इस तरह से नकद का चक्रानुक्रम चालू रखा जाता है। अगर उधारकर्ता प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं है फिर भी उधारकर्ताओं से लिया दूसरा या तीसरा ऋण शामिल होता है।”
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If you need help or know someone who does, please reach out now through a suicide hotline near you.
Article by Urvashi Sarkar.
Editing by Mike Tatarski and Anrike Visser.
Fieldwork by Varsha Torgalkar.
Research by Peter Allen Clark.
Picture by Abhaya Gupta.
Illustrations by Imad Gebrayel.
This article was developed with the support of the Money Trail Project (www.money-trail.org).
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