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माइक्रोफाइनांस संस्थाएं तेजी से बढ़ रहे हैं और इसके कारण सीमा से अधिक उधारी देने की चिंता नए सिरे से बढ़ रही है।
२००६ में, आंध्रप्रदेश के कृष्णा जिले में माइक्रोफाइनांस संस्थाओं से उधार लिए उधारकर्ताओं की आत्महत्या की घटनाएं इस बात का संकेत थी कि भारत के माइक्रोफाइनांस क्षेत्र में मुसीबतों का प्रारंभ हो गया है। २०१० में कृष्णा संकट व्यापक होता गया और आंध्रप्रदेश के अन्य हिस्सों में भी फ़ैल गया।
माइक्रोफाइनांस का अर्थ है बिना किसी जमानत के गरीबों को छोटी सी राशी का ऋण देना। अच्छे पुनर्भुगतान के दरों का लाभ उठाते हुए, यह निवेश की संधि बन गया और वर्ष २००० के दौरान भारत में तेजी से बढ़ने लगा।
२००८ और २००९ में, भारत में माइक्रोफाइनांस संस्थाओं (एमएफआईज) के ऋण का पोर्टफोलियो ख़तरनाक गति से ९७ प्रतिशत तक बढ़ा। २०१० में, उधारकर्ताओं के आत्महत्या के बढ़ते मामलों – ८० से भी अधिक – और बड़े पैमाने पर डिफाल्ट के मामलों ने “माइक्रोफाइनांस के बुलबुले को फोड़ा”।
आंध्रप्रदेश के लगभग ९.२ दशलक्ष उधारकर्ताओं ने उनके ऋण का भुगतान नहीं किया। इस माइक्रोफाइनांस संकट की तुलना अमेरिका के सबप्राइम उधार से की गई जिसने २००८ के वैश्विक आर्थिक संकट को जन्म दिया था।
विकास के चिंताजनक संकेत
प्रमुख भारतीय माइक्रोफाइनांस उद्योग संगठन, माइक्रोफाइनांस इंस्टीट्यूट्स नेटवर्क (एमएफआईएन) का डेटा यह दर्शाता है कि यह सेक्टर फिर से बढ़ रहा है।
२०१० के संकटने एमएफआई का विस्तार धीमा कर दिया था। एमएफआई को ऋण देनेवाले बैंकों के निवेश कम हो गए, और न चुकाए हुए ऋण भी बढ़ते गए। अक्तूबर २०१० में, आंध्रप्रदेश सरकार ने एक अध्यादेश पारित किया, जिसे उसी साल कानून में परिवर्तित किया गया और इसके द्वारा एमएफआई पर कई प्रतिबंध लगाए गए, जैसे कि, अनियंत्रित तरीके से कई ऋण देना कम किया गया और ऋण की वसूली के तरीकों को नियंत्रित किया गया। लेकिन जब पिछले वर्ष की तुलना में २०१५–२०१६ में जब एनबीएफसी–एमएफआईज ने शेष ऋण में ८४ प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की तब इसका विकास फिर से शुरू हुआ।
नवंबर २०१६ में, भारतीय अर्थव्यवस्था के विमुद्रीकरण के दौरान, जब ५०० और १००० रुपये के नोटों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया था, तब विकास की गति थोड़ी कम हो गयी थी जिस कारण सकल ऋण पोर्टफोलियो और ग्राहकों की संख्या में गंभीर गिरावट आई। २०१६–२०१७ के अवधि के दौरान एनबीएफसी–एमएफआईज की साल–दरसाल की वृद्धि केवल २५ प्रतिशत थी, जबकि पूरे माइक्रोफाइनांस उद्योग में केवल २६ प्रतिशत वृद्धि हुई।
बाहरी परिस्थितियों के कारण कुछ समय तक धीमे पड़ने के बाद, नवीनतम एमएफआईएन के डेटा के अनुसार २०१७–२०१८ में एनबीएफसी–एमएफआईज में ५० प्रतिशत वृद्धि और २०१८–१९ में ४७ प्रतिशत वृद्धि के साथ फिर से तेजी से विकास हो रहा है।
दिसंबर २०१८ के एमएफआईएन के माइक्रोमीटर रिपोर्ट के अनुसार, ३७ प्रतिशत के साथ एनबीएफसी–एमएफआईज माइक्रोफाइनांस के सबसे बड़े प्रदाता हैं, और ३२ प्रतिशत के साथ बैंक दुसरे स्थान पर हैं।
स्वयं सहायता समूहों (एसएचजीज) को छोड़कर, एमएफआईएनज के ५६ सदस्य एनबीएफसी–एमएफआईज भारतीय माइक्रोफाइनांस क्षेत्र का ९० प्रतिशत हिस्सा हैं, जो बैंकों से ऋण प्राप्त करते हैं।
फिर से बढ़ रही वृद्धि की वजह से, विशेषज्ञ को चिंता हो रही है कि सीमा से अधिक ऋण देने की पुरानी प्रथा अभी विलुप्त नहीं हुई हैं।
संकट के बाद विनियाम गलतियां
२०१० के माइक्रोफाइनांस संकट के वजह से रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया (आरबीआई) को हस्तक्षेप करना पड़ा और इस क्षेत्र को अधिक कठोरता से नियंत्रित करना पड़ा। २०११ के मालेगाम समिति रिपोर्ट में, माइक्रोफाइनांस में कार्य कर रहे एनबीएफसीज को नियंत्रित करने के लिए गैर–बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की नई श्रेणी, गैर–बैंकिंग वित्तीय कंपनीज–माइक्रोफाइनांस संस्थाओं (एनबीएफसी–एमएफआईज), का निर्माण किया किया गया।
कई बार ऋण देना, सीमा से अधिक ऋण देना और नकली उधारकर्ता यानि वास्तविक लाभार्थी के बजाय किसी अन्य व्यक्ति ऋण देना जैसे मामलों पर प्रतिबंध लगाने के लिए समिति ने दिशानिर्देश बनाए।
साथ ही, समिति ने ऋण वसूली के किन तरीकों को बलपूर्वक समझा जाएगा, यह दोहराया। जैसे कि मासिक पुनर्भुगतान के बजाय साप्ताहिक भुगतान वसूल करना, (भले ही आरबीआई ने आधिकारिक तौर पर साप्ताहिक पुनर्भुगतान की अनुमति दी है)। समितिने क्रेडिट ब्युरोज स्थापित करने के आदेश भी दिए है।
उद्योग संस्थाएं, एमएफआईएन और स–धन को क्रमशः २०१४ और २०१५ में स्वयं–नियंत्रित संगठन (एसआरओज) के रूप में मान्यता मिली। उन्होंने एनबीएफसी–एमएफआईज के लिए आचारसंहिता बनाई और उसका अनुपालन हो इस बात को सुनिश्चित करना शुरू किया। लेकिन, आरबीआई के दिशानिर्देशों का अनुपालन करने की मुख्य जिम्मेदारी हर एमएफआईज पर आ गई। इस दौरान, स्वयं–नियंत्रित संगठनों को आरबीआई को सभी क्षेत्रों के विकास के बारे में जानकारी देना, जांच करना और तिमाही रिपोर्ट प्रस्तुत करने का काम सौपा गया था।
ग्लोबल ग्राउंड मीडिया के साथ बातचीत और ईमेल संभाषणों के दौरान, आरबीआई के नियामक कारवाई के बावजूद एमएफआईएन और स–धन के प्रतिनिधियों ने २०१० के आंध्रप्रदेश के संकट के लिए एमएफआईज को जिम्मेदार नहीं ठहराया।
एमएफआईएन
ग्लोबल ग्राउंड मिडिया को भेजी गयी ईमेल प्रतिक्रिया में एमएफआईएन के सीईओ, हर्ष श्रीवास्तव जी ने कहा कि, एनबीएफसी–एमएफआई उद्योगों को जिम्मेदारी से ऋण देने का पालन करते हुए और ग्राहक संरक्षण प्रदान करते हुए आगे बढ़ना होगा। श्रीवास्तव के अनुसार, एनबीएफसी–एमएफआईज के १५ प्रतिशत “वर्तमान ऋण गहराई” के साथ बाजार में इसकी व्याप्ति काफी हद तक कम है।
एमएफआईएन्स के स्वयं–नियंत्रित संगठन समिति के अध्यक्ष प्राध्यापक अलोक मिश्रा जी ने कहा: “प्रयोजन के उल्लंघन के लिए गंभीर कारवाई की जाए ऐसे कार्य अस्तित्व में नहीं हैं।”
लेकिन, इसी प्राध्यापक मिश्रा जी की एमएफआईएन की जिम्मेदार वित्त इंडिया रिपोर्ट (२०१६) में कहा गया है कि, “फिल्ड स्टाफ सदस्य ज्यादा राशी का ऋण लेने के लिए दबाव डालना जारी रखा हैं, और क्रेडिट ब्यूरो के जांच के बावजूद काफी हद तक अनेक ऋण देना जारी है।”
रिपोर्ट में यह भी सूचित किया है कि, “क्रेडिट ब्यूरो की रिपोर्ट्स में गंभीर कमियां थी, जैसे कि डेटा का सत्यापन, और कुछ मामलों में उधारकर्ता के कर्जदारी की पूरी जानकारी प्रदान करने में असफलता।
हाल ही में, प्रोफेसर मिश्रा और विकास सलाहकार अजय तनखा द्वारा संकलित समावेशी वित्त भारत रिपोर्ट २०१८ में भी मुसीबत बननेवाली प्रवृतियों पर रोशनी डाली है। रिपोर्ट में एमएफआईज के द्वारा तृतीय–पक्ष के उत्पादों के जबरदस्ती से होनेवाले खुदरा व्यापार पर भी ध्यान दिया गया है, जिस पर एमएफआईएन्ज ने प्रतिक्रिया दी कि उन्होंने ‘तृतीय पक्ष उत्पादों के लिए आदेश’ जारी किए हैं जिसमें अपराधियों के खिलाफ दंडात्मक कारवाई शामिल नहीं है।
स–धन
छोटे या मध्यम आकार के एनबीएफसी–एमएफआईज और एनजीओ जिसके सदस्य हैं ऐसे स–धन संस्था के कार्यकारी संचालक पिल्लारीसेती सतीश जी ने कहा कि, “सदस्य संस्थाओं को आचार संहिता का प्रशिक्षण मिलता हैं, आचारसंहिता के पालन के लिए उनका ऑडिट होता हैं और निगरानी संघ के अधीन होता हैं। इसमें एक शिकायत निवारण प्रणाली भी होती हैं”
२०१८ में, स–धन ने केरला के पलक्कड जिले में माइक्रोफाइनांस के ऋणों के कारण होनेवाली आत्महत्याओं की रिपोर्ट के बाद इसमें हस्तक्षेप किया। उस समय द न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने बताया था कि, माइक्रोफाइनांस कंपनियों से लोन लेने के बाद और उसे चुकाने के लिए दबाव डालने पर तीन व्यक्तियों ने आत्महत्या कर ली थी।
केरल में आत्महत्या के बाद भी एमएफआई को किसी कारवाई का सामना नहीं करना पड़ा। इसके बजाय सतीश जी ने कहा कि, स–धन ने पल्लकड के एनबीएफसी–एमएफआईज के कर्मचारियों को सीमा से अधिक ऋण लिए हुए ग्राहकों से कैसे निपटना चाहिए और बलपूर्वक कारवाई करने से परहेज कैसे करना चाहिए इसके लिए “परामर्श प्रदान किया”।
सतीश जी ने कहा कि, उस इलाके में एमएफआईज और साहूकार दोनों भी मौजूद थे। उन्होंने कहा, “हमने एमएफआईज के खिलाफ विशिष्ट कारवाई नहीं की क्योंकि, एमएफआईज ने व्यक्तियों के दिए हुए ऋण उनके सीमा के अनुसार थे। लेकिन उधारकर्ताओं ने खुद कई संस्थाओं से उधार लिए थे। इसलिए तकनीकी तौर पर एमएफआई गलत नहीं है।” बाद में, सतीशजी ने ग्लोबल ग्राउंड मिडिया के सामने स्वीकार किया कि, क्रेडिट रेटिंग ब्यूरो द्वारा संभावित ग्राहकों की जांच करके एमएफआईज को यह पता लगाना चाहिए कि ग्राहक कर्जे में डूबा हुआ हैं या नहीं।
आरबीआई ने ऋण के सीमाओं की जांच की जिम्मेदारी एनबीएफसी–एमएफआईज पर डाली हैं, ग्राहकों पर नहीं। आरबीआई के नियम के अनुसार जिन ग्राहकों ने दो एनबीएफसी–एमएफआईज से ऋण लिया है और पहले से १,००,००० रुपयों तक का ऋण है ऐसे ग्राहकों को लोन देने से मनाई करता है। नियमों के अनुसार एनबीएफसी–एमएफआईज को क्रेडिट ब्यूरो में शामिल होने की जरूरत हैं, जिनके जरिए उन्हें ग्राहक के ऋण की जांच करनी चाहिए और उनके खुद के ग्राहकों के ऋण का विवरण भी देना चाहिए।
सरकारी निष्कर्ष
नवंबर २०१६ में विमुद्रीकरण के दौरान, एनबीएफसी–एमएफआईज पर फिर से ऋण की वसूली के लिए बलपूर्वक तरीकों के इस्तेमाल करने के आरोप लगे थे। महिला उधारकर्ताओं द्वारा विरोध दर्शाने के बाद और नागपुर तथा अमरावती में कंपनियों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज किए जाने पर, अप्रैल २०१७ में महाराष्ट्र सरकार ने पूर्वी महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में, जिसमे नागपुर और अमरावती प्रभाग शामिल है, माइक्रोफाइनांस द्वारा दिए गए जमानत–मुक्त ऋण की जांच के लिए एक समिति बनाई। समिति ने मई २०१८ में अपनी रिपोर्ट सरकार को प्रस्तुत की। समिति की रिपोर्ट, जो ग्लोबल ग्राउंड मिडिया को प्राप्त हुई है, मानती है कि माइक्रोफाइनांस संस्थाएं जरूरतमंदों और अल्प आय समूहों के वित्तपोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं लेकिन माइक्रोफाइनांस कंपनियों द्वारा दुर्व्यवहार किए जाने के कई उदाहरण हैं, जैसे कि एक ही लाभार्थी को कई ऋण देना। एक मामले में, एक ही उधारकर्ता ने एक ही समय पर अलग–अलग माइक्रोफाइनांस संस्थाओं से छह से आठ ऋण प्राप्त किए थे।
रिपोर्ट के अनुसार, एनबीएफसी–एमएफआईज का प्रमुख उद्देश्य मुनाफा कमाना था। उन्हें ग्रामीण महिलाओं के कौशल्या विकास या कुटीर उद्योगों के विकास की कोई परवा नहीं थी ।
इस दौरान, एनबीएफसी–एमएफआईज का व्याजदर २२ और २६ प्रतिशन के बीच था, जो आरबीआई द्वारा मान्य सीमा के भीतर है। यह व्याजदर बैंकिंग क्षेत्र के दर से ज्यादा हैं। बैंकिंग क्षेत्र के व्याजदर औसत ९ से १० प्रतिशत होते है।
रिपोर्ट के लेखकों ने आरबीआई से एमएफआईज पर निगरानी बढ़ाने, २०११ मालेगाम समिति के सिफारिशों के कार्यान्वयन को प्रभावी रूप से सुनिश्चित करने, २० प्रतिशत तक उचित ब्याज दरों के गारंटी देने, एक ही उधारकर्ता को कई ऋण वितरित न करने और उधारकर्ताओं को बीमा प्रदान करने की मांग की।
रिपोर्ट में किए आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए, एमएफआईएन के प्रवक्ता ने ग्लोबल ग्राउंड मिडिया को बताया कि, “महाराष्ट्र सरकार ने…..माइक्रोफाइनांस कंपनियों द्वारा किए जानेवाले अच्छे कामों को भी रेकॉर्ड में शामिल किया हैं । साथ ही, उन बातों पर रोशनी डाली हैं जिन में सुधार की जरूरत हैं।”
फिर भी, माइक्रोफाइनांस उद्योग की रिपोर्ट्स और महाराष्ट्र सरकार समिति के निष्कर्षों में सीमा से अधिक लोन देने, वसूली की बलपूर्वक तकनीके और ग्राहकों की लोन लेने की क्षमता का आकलन करने की कमी पर जोर दिया गया हैं।
मूल्यांकन दिखा रहे है की समस्या अभी कायम हैं
२०१० के आंध्रप्रदेश संकटने माइक्रोफाइनांस क्षेत्र को हिलाकर रख दिया, जिसके बाद २०११ में आरबीआई के फेअर प्रॅक्टिस कोड के अनुसार संरचना करके, एमएफआईएन और स-धन के द्वारा एनबीएफसी-एमएफआईज के लिए संयुक्त रूप से आचारसंहिता को विकसित किया गया| एनबीएफसी-एमएफआईज का प्रमुख ऋण-प्रदाता, भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (एसआईडीबीआई) ने एनबीएफसी-एमएफआईज के आचार संहिता के संचालन (सीओसीए) के लिए बाहरी मुल्यांकन और रेटिंग एजेंसीज को अधिकृत किया
एमएफआईएन के स्व-नियामक संगठन समिति के अध्यक्ष, प्राध्यापक अलोक मिश्रा को एनबीएफसी-एमएफआईज द्वारे आचारसंहिता के उल्लंघन के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा, “[एनबीएफसी-एमएफआईज] सभी नियमों का पालन करते हैं| यह क्षेत्र न केवल अच्छी तरह से नियमित हैं बल्कि ज्यादा ही नियमित है| भारतीय माइक्रोफाइनांस क्षेत्र गजब का जवाबदेही है, और यहाँ दुनिया के सबसे सख्त और निदेशात्मक अधिनियम लागु है|”
दिसंबर २०११ में, रमेश अरुणाचलम, जिन्होंने माइक्रोफाइनांस पर कई किताबें लिखी हैं और इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर काम किया हैं, उन्होने सीओसीएज में उदारता से अंक देने पर सवाल उठाया| उन्हें चिंता हैं कि विनियामक संहिता का वास्तविक रूप से कार्यान्वयन हो रहा है या नहीं इसकी जांच करने के बजाय संहिता कागज पर अस्तित्व में हैं या नहीं इसकी जांच करते हैं|
एनबीएफसी द्वारा लाखों का रक्कम न चुकाने का अनुमान लगाने में क्रेडिट रेटिंग एजेंसीज को हाल ही मिली असफलता की ओर इशारा करते हुए, अरुणाचलम जी ने कहा, “केवल विस्तृत सीओसीएज के होने से वास्तविक रूप से कार्यान्वयन की कोई गारंटी नही होती हैं| इस क्षेत्र की आलोचना कभी स्वीकार नहीं की जाती है| कुछ निवेशकों और ऋण-प्रदाताओं सहित कुछ स्टेकहोल्डर चाहते हैं कि एनबीएफसी-एमएफआईज ग्राहकों को बहूत ज्यादा मात्रा में धन वितरित करें| आंकड़े को बढ़ाया जाता हैं, और एमएफआईज के संचालन में अभी भी ब्रोकर एजंट मॉडल बरक़रार हैं|”
आरबीआई जे अनुसार, एनबीएफसी-एमएफआईज को कम से कम एक क्रेडिट रेटिंग ब्यूरो का सदस्य होना चाहिए| क्रेडिट ब्यूरो माइक्रोफाइनांस के उधारकर्ताओं का डेटा संचित करते हैं, जिसका इस्तेमाल करके एनबीएफसी-एमएफआईज उनके ग्राहकों के मौजूदा ऋण के विवरण और उनके उधार-पात्रता का मुल्यांकन करते हैं| क्रेडिट रिस्क के सही आकलन की असमर्थता को लेके आरबीआई ने रेटिंग एजेंसियोंकी कड़ी आलोचना की|
२०१४ में, कंसल्टिंग फर्म माइक्रोसेव ने ५० एमएफआईज के सीओसीए को संगठित किया| उनकी अगली रिपोर्ट में कहा गया कि, आचारसंहिता के बारे में उनके कर्मचारियों को जानकारी देने के साथ-साथ पारदर्शकता और निष्पक्षता में भी एमएफआईज ने अच्छा प्रदर्शन किया| लेकिन कई एमएफआईज ने निर्धारित सीमा से अधिक आय वाले ग्राहकों को सेवा प्रदान की हैं| कुछ प्रतिशत एमएफआईज ने जमानत स्वीकार की और जमानत-मुक्त उधार के नियमों का उल्लंघन किया| केवल ५४ प्रतिशत एमएफआईज में ऐसे बोर्ड थे जिसमें एक तिहाई से अधिक सदस्य स्वतंत्र थे| २०११ की आरबीआई मालेगाम समिति का रिपोर्ट, जिसका गठन २०१० के आंध्रप्रदेश संकट के बाद माइक्रोफाइनांस सेक्टर की छानबीन करने और सिफारिश प्रस्तुत करने के लिए हुआ था, और एमएफआइएन और स-धन द्वारा विकसित संशोधित आचारसंहिता के अनुसार, एनबीएफसी-एमएफआईज के बोर्ड पर स्वतंत्र संचालकों की नियुक्ति आवश्यक है| यहां तक कि, संशोधित आचारसंहिता में कहा गया है कि, एमएफआईज को उनके एक-तिहाई शासक मंडल में स्वतंत्र संचालक नियुक्त करने का प्रयास करना चाहिए|
ग्लोबल ग्राउंड मिडिया ने भी आचारसंहिता के मुल्यांकन का खुलासा किया है जिसमें बलपूर्वक वसूली के तरीके, मर्यादा से ज्यादा ऋण और यहां तक कि जीवनसाथी के मृत्यु के बाद पुनर्भुगतान का संचयन की कई घटनाओं को सूचीबद्ध किया हैं|
रेटिंग और मुल्यांकन एजेंसियों द्वारा २०१६ से २०१८ में स्थापित यह हाल ही के सीओसीए दर्शाते हैं कि २०१० के संकट से पहले मौजूद कई समस्याएं आज भी कायम हैं|
- आईसीआरए मैनेजमेंट कंसल्टिंग सर्विसेस लिमिटेड के आरोहन के २०१६ के सीओसीए ने यह दर्शाया कि तीन मामलों में जीवनसाथी के मृत्यु के बावजूद ऋण की किस्तों को जमा किया गया था| आईसीआरए के आरोहन के २०१७ के सीओसीए रिपोर्ट में बताया गया है कि इसने उधारकर्ताओं को स्वीकृति पत्र और ऋण अनुबंध की प्रति प्रदान नहीं की|
- एक्सेस असिस्ट द्वारा संचालित उत्तरायन की २०१६ की सीओसीए में देखा गया कि इसका मंडल ऋण न चुकानेवाले समूह और सदस्यों को समझाने और दबाव की रणनीति अपनाने कि सिफारिश करती हैं| एम२आई कंसल्टिंग के जीडीएफपीएल के २०१६ के सीओसीए ने इन्हें ग्राहक खोजने के लिए अनाधिकृत एजंटों से दूर रहने के लिए कहा|
- केअर के एसवी क्रेडिटलाइन्स के २०१७ के सीओसीए को ऐसे उदाहरण मिले जिनमें उधारकर्ता की आय निर्धारित सीमा से अधिक थी|
- आईसीआरए के अन्नपूर्णा माइक्रोफाइनांस के २०१७ के सीओसीए ने कहा कि उन्होने ऐसे उधारकर्ताओं को उधार दिया हैं जिनकी ऋणग्रस्तता अनुमति दिए हुए स्तर से अधिक थी|
- मार्च २०१७ में, केअर द्वारा आयोजित सीओसीए के अनुसार प्रयास में आचारसंहिता के अनुपालन के लिए कोई नीति नहीं थी|
- एम२आई कंसल्टिंग के नाइटिंगेल फिनवेस्ट प्रायवेट लिमिटेड के २०१५ के रिपोर्ट में देखा गया कि ग्राहकों में ब्याज दरों के बारे में ज्यादा जागरूकता नहीं हैं|
कई एमएफआईज के सीओसीए ने यह भी कहा कि उनके पास संतोषजनक ग्राहक निवारण तंत्र की कमी हैं|
- उदाहरण के लिए, आरोहन के २०१७ के सीओसीए ने कहा कि उनके पास उचित तरीके से तैयार किया हुआ शिकायत निवारण तंत्र था, लेकिन उधारकर्ताओं को इस तंत्र के बारे ज्यादा जानकारी नहीं थी|
- इसी तरह, अन्नपूर्णा का २०१७ के सीओसीए दर्शाता है की, उद्योग संघ के शिकायत निवारण तंत्र के बारे में ग्राहकों में जागरूकता काफी कम थी|
- एम२आई कंसल्टिंग के चनुरा के २०१५ के सीओसीए ने यह नोट किया कि उनके पास शिकायत निवारण समिति तो थी लेकिन शाखा कर्मचारियों को दी गई, ग्राहकों की प्रतिक्रिया संभाल कर रखने के लिए उनके पास कोई तंत्र नहीं था|
- जीडीएफपीएल के २०१६ के सीओसीए ने यह बताया किया कि शिकायतों को हल करने के लिए उनके पास क्रमिक प्रक्रिया नहीं हैं|
२०१६ तक कुल १०० सीओसीए मुल्यांकन पूर्ण किए गए थे, जब कि २०१६ से २०१७ के बीच ३७ एमएफआईज के लिए सीओसीए का अभ्यास किया गया था|
उद्योग रिपोर्ट और सरकारी समिति के अलावा, हाल ही के आचारसंहिता मुल्यांकन में २०१० के संकट के कई सालों बाद भी मौजूद मुद्दों का उल्लेख किया गया जिनमें अब तक बदलाव लाना चाहिए था|
माइक्रोफाइनांस विनियामकों के हितों में संघर्ष की उपस्तिथि
स्व-नियामक संगठन (एसआरओज), माइक्रोफाइनांस इंस्टीट्यूशन्स नेटवर्क (एमएफआईएन), और स-धन की स्वतंत्रता पर सवाल उठे हैं।
एमएफआईज की प्रमुख स्व-नियामक संस्था, एमएफआईएन के प्रशासन में आनेवाली समस्याओं को एमएफआईएन के बोर्ड में नियुक्त व्यक्तियों द्वारा बनाई गई रिपोर्टों में उजागर किया गया हैं। बात की जा रही है, एमएफआईएन की स्व-नियामक संगठन समिति के अध्यक्ष और स्वतंत्र बोर्ड सदस्य, प्राध्यापक अलोक मिश्रा द्वारा लिखित २०१६ की जिम्मेदार वित्त इंडिया रिपोर्ट की। इसमें लिखा है कि, “[स्व-नियामक संस्था] और वकालत के बीच एक सख्त पृथक्करण होना सही रहेगा, और साथ ही, [स्व-नियामक संस्था] के काम के लिए सदस्य निधि पर निर्भरता को कम किया जाना चाहिए।”
एमएफआईएन की पारदर्शिता चिंता का विषय है, क्योंकि यह संस्था महत्वपूर्ण क्षेत्र परिक्षण रिपोर्ट, क्रेडिट ब्यूरो डेटा, तृतीय पक्ष द्वारा किया हुआ एमएफआई मुल्यांकन सार्वजनिक रूप से शेअर नहीं करती हैं जैसे कि २०१६ के जिम्मेदार वित्त इंडिया रिपोर्ट उल्लेखित है। रिपोर्ट के अनुसार, इसका संभाव्य कारण यह हो सकता है कि एमएफआईएन एमएफआईज सदस्यों द्वारा निधि प्राप्त करते हैं और इस वजह से सार्वजनिक प्रकटीकरण में बाधा बनता है। “सार्वजानिक निधि के माध्यम से [स्व-नियमन] के वित्त पोषण से सार्वजनिक प्रकटीकरण में वृद्धि सुनिश्चित हो जाएगी, क्योंकि वर्तमान में सदस्य-आधारित संस्था होने के कारण इसके कामकाज के महत्वपूर्ण पहलू जैसे कि क्षेत्र परीक्षण रिपोर्ट, [क्रेडिट ब्यूरो] डेटा आदि, प्रकट नहीं किए जाते और इस तरह से इसके कामकाज में पारदर्शिता कम हो जाती है।”
प्राध्यापक मिश्रा ने यह भी कहा है कि एमएफआईएन के बहुतांश बोर्ड सदस्यों को स्वतंत्र होना चाहिए और स्वतंत्रता के मापदंड क़े नुसार, एमएफआईज को वित्तपोषण जैसी प्रत्यक्ष सेवा देने वाले लोगों को बोर्डसे वर्जित करना चाहिए।”
घूमनेवाला दरवाजा
रमेश अरुणाचलम, जिन्होंने माइक्रोफाइनांस पर कई किताबें लिखी हैं और जिन्होंने माइक्रोफाइनांस में हितों के संघर्षों को बड़े पैमाने पर उजागर किया है, उनका कहना हैं कि, “अच्छे शासन के लिए हितों के संघर्षों को समझने की और उन्हें कम करने की आवश्यकता है, लेकिन माइक्रोफाइनांस क्षेत्र में अभी तक ऐसा नहीं हुआ है।”
उनहोंने आगे यह भी कहा कि, “स्व-नियमन एक विरोधाभास है, और आभासी-नियामक संस्थाओं जैसे उद्योग संस्थाओं का होना खतरे से भरा है।”
एमएफआईएन में १२ शासक बोर्ड सदस्य हैं, जिनमें से आठ एमएफआईज के सदस्यों में से हैं। शेष चार सदस्य तथाकथित “स्वतंत्र बोर्ड सदस्य” हैं।
स्वतंत्र बोर्ड के सदस्यों में से एक सदस्य, नविन कुमार मैनी एसआईडीबीआई के सेवानिवृत्त सहायक प्रबंध संचालक हैं। २०१४ में एमएफआईएन में स्वतंत्र बोर्ड सदस्य नियुक्त करने के समय वे मुद्रा के गैर-कार्यकारी संचालक भी थे, यह एक वित्तीय संस्था है जो अगस्त २०१५ से फ़रवरी २०१८ तक एमएफआईज को उधार देती थी। श्री देश राज डोगरा सीएआरई रेटिंग्स के पूर्व प्रबंध संचालक और सीईओ है।
प्राध्यापक अलोक मिश्रा को भी स्वतंत्र बोर्ड सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया हैं। मिश्रा पहले एक माइक्रोक्रेडिट रेटिंग एजेंसी (एम-सीआरआईएल) के सीईओ और नाबार्ड (नैशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चरएंड रुरल डेवलपमेंट) के सहायक जनरल मैनेजर थे। जब ग्लोबल ग्राउंड मीडिया ने अलोक मिश्रा जी से जब एमएफआईएन के स्वतंत्र बोर्ड सदस्य के रूप में उनके ओहदे के बारे में पूछा तो उनहोंने कोई भी प्रतिक्रिया देने से इन्कार कर दिया।
सेवानिवृत्त भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी, डॉ. अरुणा (लिमये) शर्मा एकमात्र स्वतंत्र बोर्ड सदस्य हैं जिन्होंने एमएफआईएन के सदस्यों को प्रत्यक्ष सेवाएं प्रदान करनेवाली किसी संस्था में कभी भी काम नहीं किया हैं।
एमएफआईएन के बोर्ड के बारे में चिंता जताते हुए, अरुणाचलम जी ने ग्लोबल ग्राउंड मीडिया के साथ मुलाकात में अपनी राय बताई: “एसआईडीबीआई और मुद्रा माइक्रोफाइनांस क्षेत्र के प्रमुख ऋणदाता हैं। केअर रेटिंग्स और एम-सीआरआईएल तृतीय पक्ष मुल्यांकन और आचारसंहिता का मूल्यांकन करते हैं। माइक्रोफाइनांस व्यवसाय से लाभ प्राप्त करनेवाले संस्थाओं के लिए जिन्होंने काम किया हैं ऐसे पूर्व कर्मचारी स्व-नियामक संस्था के स्वतंत्र बोर्ड सदस्य कैसे बन सकते हैं? किसी भी परिस्थिति में एमएफआईएन के बोर्ड को अच्छे शासन का उदाहरण नहीं कहा जा सकता है।”
उन्होंने सुझाव दिया हैं कि बोर्ड के सदस्य स्वतंत्र रूप से तभी काम कर सकते हैं जब उनके पिछले माइक्रोफाइनांस उद्योग और वर्तमान के स्व-नियामक संस्था के स्वतंत्र बोर्ड सदस्य के तौर पर नियुक्ति में पर्याप्त समय गुजर चूका हैं।
स्वतंत्र बोर्ड के सदस्य नविन कुमार मैनी, देश राज डोगरा और अलोक मिश्रा के कामकाज पृष्ठभूमि के परिक्षण से पता चला हैं की उपरोक्त के अनुसार अपनी पिछली नौकरियों को छोड़ने के बाद लगभग एक वर्ष या उससे भी कम समय में वे एमएफआईएन में शामिल हो गए हैं। अगस्त २०१८ में, इस्पात मंत्रालय से सचिव के रूपसे सेवा-निवृत्त होने के छह महीने बाद डॉ. अरुणा (लिमये) शर्मा जी को एमएफआईएन द्वारा स्वतंत्र बोर्ड सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया है ।
एमएफआईएन के प्रवक्ता ने ईमेल द्वारा कहा कि, “एमएफआईएन के सदस्यों में अगर हितों के संघर्ष होते हैं तो हमारे स्वतंत्र निदेशक कोर्पोरेट प्रशासक के उच्चतम मानकों का पालन करते हैं और किसी भी चर्चा से खुद को दूर रखते हैं।”
शासक और प्रतिनिधित्व करनेवाले सदस्य
माइक्रोफाइनांस क्षेत्र के अन्य कंपनियों के साथ संबंध के अलावा, जब स्वतंत्र बोर्ड सदस्य एक ही समय पर अनेक सदस्य संस्थाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं तब हितों में प्रत्यक्ष संघर्ष का निर्माण होता हैं। कम से कम दो एमएफआईएन स्वतंत्र बोर्ड सदस्य अभी भी ऐसी संस्थाओं में बोर्ड के पदों पर हैं जो एमएफआईएन के सदस्य हैं।
देश राज डोगरा आशीर्वाद माइक्रोफाइनांस लिमिटेड और एम पॉवर माइक्रोफाइनांस के बोर्ड में स्वतंत्र संचालक के रूप में सूचीबद्ध हैं और यह दोनों संस्थाएं एमएफआईएन की सदस्य हैं। स्वतंत्र बोर्ड सदस्य अलोक मिश्रा भी एमएफआईएन की सदस्य संस्था वाया फिनसर्व के बोर्ड में स्वतंत्र संचालक हैं।
एमएफआईएन के प्रवक्ता ने कहा: “अगर स्वतंत्र संचालकों किसी एमएफआईएन सदस्य के बोर्ड में होते हैं तो उन्हें ऐसा स्पष्ट करना जरूरी होता हैं, जैसे कि देश राज डोगरा जी ने एम पॉवर और आशीर्वाद के मामले में किया था।” एमएफआईएन के प्रवक्ता ने यह भी कहा की, मिश्रा जी हाल ही में वाया फिनसर्व में शामिल हुए हैं और उन्होंने इस बात का एमएफआईएन के सचिवालय खुलासा किया था।
एमएफआईएन के २०१८ के उपनियमों में कहा गया है कि, “असोशिएट्स [गैर-सदस्य] के प्रतिनिधि स्वतंत्र सदस्य के तौर पर नियुक्त किए जाने के लिए योग्य हैं।” असोशिएट्स उन गैर-सदस्यों को संदर्भित करता हैं जो माइक्रोफाइनांस और वित्तीय समावेशन से संबंधित गतिविधियों में शामिल हैं और जिनकी एमएफआईएन के साथ उप-सदस्यता हैं लेकिन एनबीएफसी-एमएफआई में नहीं। उपनियम यह नहीं बताते कि सदस्य संस्थाओं के प्रतिनिधि उन्हें अपने संबंध का स्पष्टीकरण देना जरूरी है इस शर्त पर पात्र हो सकते हैं।
एमएफआईएन के प्रवक्ता ने बताया कि स्वतंत्र बोर्ड सदस्यों को असोसिएशन के ज्ञान और निपुणता को बढ़ाने की क्षमता के लिए चुना जाता हैं। प्रवक्ता ने आगे कहा, “एक व्यवसाय के रूप में माइक्रोफाइनांस अलग होकर कार्य नहीं कर सकता। एमएफआईएन और उसके सदस्य कई हितधारकों के साथ मिलकर काम करते हैं।”
ईमेल के माध्यम से प्रवक्ता ने यह भी बताया कि, स्वतंत्र संचालक एमएफआईएन के शासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। स्वतंत्र संचालक नामांकन और पुरस्कार समिति की अध्यक्षता करता है, वरिष्ठ प्रबंधन के कार्य की समीक्षा करता है, सीईओ के प्रदर्शन का मूल्यांकन करता है और बोर्ड के सामने नए स्वतंत्र संचालकों की सिफारिश करता हैं, और साथ ही स्व-नियामक संगठन समिति और संपादन समिति की भी अध्यक्षता करता है। एमएफआईएन की वित्त तथा लेखा परीक्षा और एसआरओ समितियां भी स्वतंत्र संचालकों की अध्यक्षता में होती हैं।
एमएफआईएन के चार स्वतंत्र बोर्ड सदस्यों में से दो, डोगरा और मिश्रा, यह सारे कार्य कर रहे हैं और उसी समय पर सदस्य संस्थाओं से भी जुड़े हुए हैं।
विभिन्न एसआरओ, समान कार्य
अन्य स्व-नियामक संगठन, स-धन में वर्तमान स्थिति में शासक बोर्ड पर ११ सदस्य हैं जिनमें से आठ स-धन के सदस्य संस्थाओं से संबंधित हैं। अन्य तीन स्वतंत्र सदस्यों में से ब्रिजमोहन एसआईडीबीआई के पूर्व कार्यकारी संचालक थे और मधुकर उमरजी आरबीआई के कार्यकारी संचालक थे, जिन्होंने २००० साल में इसे छोड़ दिया। तीसरी स्वतंत्र संचालक नाबार्ड की प्रमुख जनरल मैनेजर राजश्री बरुआ हैं।
स्वतंत्र बोर्ड सदस्य, ब्रिज मोहन अनन्या फाइनांस ऑफ़ इन्क्लूसिव ग्रोथ के बोर्ड में अध्यक्ष और स्वतंत्र संचालक हैं और साथ ही मानवीय विकास और वित्त में भी स्वतंत्र संचालक हैं। दोनों संगठन स-धन के सदस्य हैं। मोहन भी एम-सीआरआईएल नामक रेटिंग एजेंसी में स्वतंत्र संचालक हैं।
ब्रिज मोहन के संबंधों के बारे में पूछने पर, स-धन के कार्यकारी संचालक पिल्लारीसेत्ती सतीश ने ईमेल में कहा: “ब्रिज मोहन किसी भी संस्था के पूर्णकालिक कर्मचारी नहीं हैं। वह [इन संस्थाओं] के स्वतंत्र संचालक/ स्वतंत्र बोर्ड सदस्य हैं। वे जिन संस्थाओं से संबंधित हैं वो सभी संस्थाएं देश में समावेशी वित्त के व्यापक लक्ष के लिए कार्य करती हैं, इसलिए स्वतंत्र संचालक/ स्वतंत्र बोर्ड सदस्य के रूप में इन संस्थाओं में उनके योगदान के बारे में कोई भी समस्या नहीं है।”
नाबार्ड में बरुआ के पद के बारे में बार-बार पूछे गए सवालों पर सतीश जी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
कार्यकारी संचालक सतीश जी नाबार्ड में प्रमुख जनरल मैनेजर थे। कार्यकारी संचालक को स-धन के बोर्ड में कोई पद नहीं है।
अरुणाचलम जी ने स-धन के बोर्ड के बारे में कहा: “स-धन का बोर्ड परिपूर्ण नहीं है। लेकिन उनके पास विनियामक आरबीआई का प्रतिनिधि है यह बात अधिक निष्पक्षता का संकेत देती है।”
अरुणाचलम जी ने आगे बताया कि इन क्षेत्रों के कमजोर शासन के बारे में आरबीआई को पता है, लेकिन वह खुद भी विश्वसनीयता के संकट से परेशान है। उन्होंने पूछा “क्या आरबीआई [स्व-नियामक संगठनों] द्वारा प्रस्तुत रिपोर्टों की यथार्थता सुनिश्चित कर सकता है?” हाल ही के वर्षों में, आरबीआई के कमजोर पर्यवेक्षण, पारदर्शिता की कमी और संदेहास्पद ऋण की जांच में विफलता के बारे में आरबीआई पर सवाल उठाए गए हैं। आरबीआई ने ग्लोबल ग्राउंड मिडिया द्वारा प्रतिक्रिया देने के बार-बार किए हुए अनुरोधों का कोई जवाब नहीं दिया है।
आरबीआई द्वारा डिफाल्टरों के नाम प्रदान न किए जाने के लिए आरबीआई के खिलाफ केंद्रीय सुचना आयोग के मामले में, आरबीआई ने कहा कि “ग्राहक और आरबीआई के बीच गोपनीयता” के कारण वह नाम प्रदान नहीं कर सकते और मांगी हुई जानकारी न केवल जान-बूझकर बने डिफाल्टरों के बारे में होगी बल्कि आर्थिक संकट में फसें उधारकर्ताओं से भी संबंधित होगी। यह मामला मुंबई उच्च न्यायालय में अनिर्णीत है।
लक्ष्य का बुखार
माइक्रोफाइनांस में शासन चिंता का विषय बना हुआ है लेकिन आम लोगों के बीच की हकीकतें भी परेशान करने वाली हैं।
मोईन काझी, जिन्होंने बैंक और माइक्रोफाइनांस कंपनियों में काम किया है, और विकास क्षेत्र में चालीस साल बिताए हैं, वे माइक्रोफाइनांस क्षेत्र के बारे में आम तौर पर कहते हैं: “लोगों के बीच हालात बहुत ख़राब हैं। ऋण अधिकारीयों को उधारकर्ताओं को के साथ पर्याप्त रूप से परामर्श करना चाहिए लेकिन उन्हें बहुत बड़े लक्ष्य दिए जाते हैं। इस प्रक्रिया में आवश्यक परिश्रम को नजरअंदाज किया जाता है। क्या एमएफआईज गरीबों की सेवा कर रहे हैं या उनसे मुनाफ़ा कमा रहे हैं?”
जब एमएफआईज अपने ऋण के पोर्टफोलियो का विस्तार करते हैं तब ऋण अधिकारीयों को अधिक ग्राहक प्राप्त करने और ऋण की वसूली सुनिश्चित करने के दबाव का सामना करना पड़ता हैं। समावेशी वित्त इंडिया रिपोर्ट २०१८ इस बात की और इशारा करती है कि, ग्राहकों की संख्या और संचलन किए जानेवाले पोर्टफोलियो के विस्तार के संदर्भ में ऋणअधिकारीयों पर बढ़ते कार्यभार की चिंता के विषय पर एमएफआईज के द्वारा पूरी तरह से चर्चा नहीं की गई हैं।
अमूल्य कृष्णा चम्पातिराय, जो वित्तीय समावेशन में कार्य कर रहे हैं और माइक्रोफाइनांस पर काम करनेवाले अनुसंधान संगठन आईएफएमआर लीड में प्रशिक्षण और कार्यशालाओं का नेतृत्व करते हैं, उनका कहना हैं कि, एमएफआईज ने हर संकट से कुछ सिखा हैं, लेकिन जहां तक ग्राहकों का सवाल हैं, उन्हें अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है।
हालांकि माइक्रोफाइनांस के वकील सब कुछ अच्छा चल रहा है ऐसा दिखाने की कोशिश करते हैं, लेकिन इस क्षेत्र और विनियामकों की बारीकी से जांच करने पर यह सूचित होता है कि कुछ एमएफआईज गरीबों की आर्थिक सहायता करने की कोशिश करती हैं लेकिन चेतावनी के संकेत बार-बार मिलते हैं और २०१० के आंध्रप्रदेश संकट की वजह बने मुद्दे इस क्षेत्र की परेशानी अभी भी बढ़ा रहे हैं।
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Article by Urvashi Sarkar.
Editing by Mike Tatarski and Anrike Visser.
Research by Peter Allen Clark.
Illustrations by Imad Gebrayel.
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