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स्व-नियामक संगठन (एसआरओज), माइक्रोफाइनांस इंस्टीट्यूशन्स नेटवर्क (एमएफआईएन), और स-धन की स्वतंत्रता पर सवाल उठे हैं।
एमएफआईज की प्रमुख स्व-नियामक संस्था, एमएफआईएन के प्रशासन में आनेवाली समस्याओं को एमएफआईएन के बोर्ड में नियुक्त व्यक्तियों द्वारा बनाई गई रिपोर्टों में उजागर किया गया हैं। बात की जा रही है, एमएफआईएन की स्व-नियामक संगठन समिति के अध्यक्ष और स्वतंत्र बोर्ड सदस्य, प्राध्यापक अलोक मिश्रा द्वारा लिखित २०१६ की जिम्मेदार वित्त इंडिया रिपोर्ट की। इसमें लिखा है कि, “[स्व-नियामक संस्था] और वकालत के बीच एक सख्त पृथक्करण होना सही रहेगा, और साथ ही, [स्व-नियामक संस्था] के काम के लिए सदस्य निधि पर निर्भरता को कम किया जाना चाहिए।”
एमएफआईएन की पारदर्शिता चिंता का विषय है, क्योंकि यह संस्था महत्वपूर्ण क्षेत्र परिक्षण रिपोर्ट, क्रेडिट ब्यूरो डेटा, तृतीय पक्ष द्वारा किया हुआ एमएफआई मुल्यांकन सार्वजनिक रूप से शेअर नहीं करती हैं जैसे कि २०१६ के जिम्मेदार वित्त इंडिया रिपोर्ट उल्लेखित है। रिपोर्ट के अनुसार, इसका संभाव्य कारण यह हो सकता है कि एमएफआईएन एमएफआईज सदस्यों द्वारा निधि प्राप्त करते हैं और इस वजह से सार्वजनिक प्रकटीकरण में बाधा बनता है। “सार्वजानिक निधि के माध्यम से [स्व-नियमन] के वित्त पोषण से सार्वजनिक प्रकटीकरण में वृद्धि सुनिश्चित हो जाएगी, क्योंकि वर्तमान में सदस्य-आधारित संस्था होने के कारण इसके कामकाज के महत्वपूर्ण पहलू जैसे कि क्षेत्र परीक्षण रिपोर्ट, [क्रेडिट ब्यूरो] डेटा आदि, प्रकट नहीं किए जाते और इस तरह से इसके कामकाज में पारदर्शिता कम हो जाती है।”
प्राध्यापक मिश्रा ने यह भी कहा है कि एमएफआईएन के बहुतांश बोर्ड सदस्यों को स्वतंत्र होना चाहिए और स्वतंत्रता के मापदंड क़े नुसार, एमएफआईज को वित्तपोषण जैसी प्रत्यक्ष सेवा देने वाले लोगों को बोर्डसे वर्जित करना चाहिए।”
घूमनेवाला दरवाजा
रमेश अरुणाचलम, जिन्होंने माइक्रोफाइनांस पर कई किताबें लिखी हैं और जिन्होंने माइक्रोफाइनांस में हितों के संघर्षों को बड़े पैमाने पर उजागर किया है, उनका कहना हैं कि, “अच्छे शासन के लिए हितों के संघर्षों को समझने की और उन्हें कम करने की आवश्यकता है, लेकिन माइक्रोफाइनांस क्षेत्र में अभी तक ऐसा नहीं हुआ है।”
उनहोंने आगे यह भी कहा कि, “स्व-नियमन एक विरोधाभास है, और आभासी-नियामक संस्थाओं जैसे उद्योग संस्थाओं का होना खतरे से भरा है।”
एमएफआईएन में १२ शासक बोर्ड सदस्य हैं, जिनमें से आठ एमएफआईज के सदस्यों में से हैं। शेष चार सदस्य तथाकथित “स्वतंत्र बोर्ड सदस्य” हैं।
स्वतंत्र बोर्ड के सदस्यों में से एक सदस्य, नविन कुमार मैनी एसआईडीबीआई के सेवानिवृत्त सहायक प्रबंध संचालक हैं। २०१४ में एमएफआईएन में स्वतंत्र बोर्ड सदस्य नियुक्त करने के समय वे मुद्रा के गैर-कार्यकारी संचालक भी थे, यह एक वित्तीय संस्था है जो अगस्त २०१५ से फ़रवरी २०१८ तक एमएफआईज को उधार देती थी। श्री देश राज डोगरा सीएआरई रेटिंग्स के पूर्व प्रबंध संचालक और सीईओ है।
प्राध्यापक अलोक मिश्रा को भी स्वतंत्र बोर्ड सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया हैं। मिश्रा पहले एक माइक्रोक्रेडिट रेटिंग एजेंसी (एम-सीआरआईएल) के सीईओ और नाबार्ड (नैशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चरएंड रुरल डेवलपमेंट) के सहायक जनरल मैनेजर थे। जब ग्लोबल ग्राउंड मीडिया ने अलोक मिश्रा जी से जब एमएफआईएन के स्वतंत्र बोर्ड सदस्य के रूप में उनके ओहदे के बारे में पूछा तो उनहोंने कोई भी प्रतिक्रिया देने से इन्कार कर दिया।
सेवानिवृत्त भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी, डॉ. अरुणा (लिमये) शर्मा एकमात्र स्वतंत्र बोर्ड सदस्य हैं जिन्होंने एमएफआईएन के सदस्यों को प्रत्यक्ष सेवाएं प्रदान करनेवाली किसी संस्था में कभी भी काम नहीं किया हैं।
एमएफआईएन के बोर्ड के बारे में चिंता जताते हुए, अरुणाचलम जी ने ग्लोबल ग्राउंड मीडिया के साथ मुलाकात में अपनी राय बताई: “एसआईडीबीआई और मुद्रा माइक्रोफाइनांस क्षेत्र के प्रमुख ऋणदाता हैं। केअर रेटिंग्स और एम-सीआरआईएल तृतीय पक्ष मुल्यांकन और आचारसंहिता का मूल्यांकन करते हैं। माइक्रोफाइनांस व्यवसाय से लाभ प्राप्त करनेवाले संस्थाओं के लिए जिन्होंने काम किया हैं ऐसे पूर्व कर्मचारी स्व-नियामक संस्था के स्वतंत्र बोर्ड सदस्य कैसे बन सकते हैं? किसी भी परिस्थिति में एमएफआईएन के बोर्ड को अच्छे शासन का उदाहरण नहीं कहा जा सकता है।”
उन्होंने सुझाव दिया हैं कि बोर्ड के सदस्य स्वतंत्र रूप से तभी काम कर सकते हैं जब उनके पिछले माइक्रोफाइनांस उद्योग और वर्तमान के स्व-नियामक संस्था के स्वतंत्र बोर्ड सदस्य के तौर पर नियुक्ति में पर्याप्त समय गुजर चूका हैं।
स्वतंत्र बोर्ड के सदस्य नविन कुमार मैनी, देश राज डोगरा और अलोक मिश्रा के कामकाज पृष्ठभूमि के परिक्षण से पता चला हैं की उपरोक्त के अनुसार अपनी पिछली नौकरियों को छोड़ने के बाद लगभग एक वर्ष या उससे भी कम समय में वे एमएफआईएन में शामिल हो गए हैं। अगस्त २०१८ में, इस्पात मंत्रालय से सचिव के रूपसे सेवा-निवृत्त होने के छह महीने बाद डॉ. अरुणा (लिमये) शर्मा जी को एमएफआईएन द्वारा स्वतंत्र बोर्ड सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया है ।
एमएफआईएन के प्रवक्ता ने ईमेल द्वारा कहा कि, “एमएफआईएन के सदस्यों में अगर हितों के संघर्ष होते हैं तो हमारे स्वतंत्र निदेशक कोर्पोरेट प्रशासक के उच्चतम मानकों का पालन करते हैं और किसी भी चर्चा से खुद को दूर रखते हैं।”
शासक और प्रतिनिधित्व करनेवाले सदस्य
माइक्रोफाइनांस क्षेत्र के अन्य कंपनियों के साथ संबंध के अलावा, जब स्वतंत्र बोर्ड सदस्य एक ही समय पर अनेक सदस्य संस्थाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं तब हितों में प्रत्यक्ष संघर्ष का निर्माण होता हैं। कम से कम दो एमएफआईएन स्वतंत्र बोर्ड सदस्य अभी भी ऐसी संस्थाओं में बोर्ड के पदों पर हैं जो एमएफआईएन के सदस्य हैं।
देश राज डोगरा आशीर्वाद माइक्रोफाइनांस लिमिटेड और एम पॉवर माइक्रोफाइनांस के बोर्ड में स्वतंत्र संचालक के रूप में सूचीबद्ध हैं और यह दोनों संस्थाएं एमएफआईएन की सदस्य हैं। स्वतंत्र बोर्ड सदस्य अलोक मिश्रा भी एमएफआईएन की सदस्य संस्था वाया फिनसर्व के बोर्ड में स्वतंत्र संचालक हैं।
एमएफआईएन के प्रवक्ता ने कहा: “अगर स्वतंत्र संचालकों किसी एमएफआईएन सदस्य के बोर्ड में होते हैं तो उन्हें ऐसा स्पष्ट करना जरूरी होता हैं, जैसे कि देश राज डोगरा जी ने एम पॉवर और आशीर्वाद के मामले में किया था।” एमएफआईएन के प्रवक्ता ने यह भी कहा की, मिश्रा जी हाल ही में वाया फिनसर्व में शामिल हुए हैं और उन्होंने इस बात का एमएफआईएन के सचिवालय खुलासा किया था।
एमएफआईएन के २०१८ के उपनियमों में कहा गया है कि, “असोशिएट्स [गैर-सदस्य] के प्रतिनिधि स्वतंत्र सदस्य के तौर पर नियुक्त किए जाने के लिए योग्य हैं।” असोशिएट्स उन गैर-सदस्यों को संदर्भित करता हैं जो माइक्रोफाइनांस और वित्तीय समावेशन से संबंधित गतिविधियों में शामिल हैं और जिनकी एमएफआईएन के साथ उप-सदस्यता हैं लेकिन एनबीएफसी-एमएफआई में नहीं। उपनियम यह नहीं बताते कि सदस्य संस्थाओं के प्रतिनिधि उन्हें अपने संबंध का स्पष्टीकरण देना जरूरी है इस शर्त पर पात्र हो सकते हैं।
एमएफआईएन के प्रवक्ता ने बताया कि स्वतंत्र बोर्ड सदस्यों को असोसिएशन के ज्ञान और निपुणता को बढ़ाने की क्षमता के लिए चुना जाता हैं। प्रवक्ता ने आगे कहा, “एक व्यवसाय के रूप में माइक्रोफाइनांस अलग होकर कार्य नहीं कर सकता। एमएफआईएन और उसके सदस्य कई हितधारकों के साथ मिलकर काम करते हैं।”
ईमेल के माध्यम से प्रवक्ता ने यह भी बताया कि, स्वतंत्र संचालक एमएफआईएन के शासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। स्वतंत्र संचालक नामांकन और पुरस्कार समिति की अध्यक्षता करता है, वरिष्ठ प्रबंधन के कार्य की समीक्षा करता है, सीईओ के प्रदर्शन का मूल्यांकन करता है और बोर्ड के सामने नए स्वतंत्र संचालकों की सिफारिश करता हैं, और साथ ही स्व-नियामक संगठन समिति और संपादन समिति की भी अध्यक्षता करता है। एमएफआईएन की वित्त तथा लेखा परीक्षा और एसआरओ समितियां भी स्वतंत्र संचालकों की अध्यक्षता में होती हैं।
एमएफआईएन के चार स्वतंत्र बोर्ड सदस्यों में से दो, डोगरा और मिश्रा, यह सारे कार्य कर रहे हैं और उसी समय पर सदस्य संस्थाओं से भी जुड़े हुए हैं।
विभिन्न एसआरओ, समान कार्य
अन्य स्व-नियामक संगठन, स-धन में वर्तमान स्थिति में शासक बोर्ड पर ११ सदस्य हैं जिनमें से आठ स-धन के सदस्य संस्थाओं से संबंधित हैं। अन्य तीन स्वतंत्र सदस्यों में से ब्रिजमोहन एसआईडीबीआई के पूर्व कार्यकारी संचालक थे और मधुकर उमरजी आरबीआई के कार्यकारी संचालक थे, जिन्होंने २००० साल में इसे छोड़ दिया। तीसरी स्वतंत्र संचालक नाबार्ड की प्रमुख जनरल मैनेजर राजश्री बरुआ हैं।
स्वतंत्र बोर्ड सदस्य, ब्रिज मोहन अनन्या फाइनांस ऑफ़ इन्क्लूसिव ग्रोथ के बोर्ड में अध्यक्ष और स्वतंत्र संचालक हैं और साथ ही मानवीय विकास और वित्त में भी स्वतंत्र संचालक हैं। दोनों संगठन स-धन के सदस्य हैं। मोहन भी एम-सीआरआईएल नामक रेटिंग एजेंसी में स्वतंत्र संचालक हैं।
ब्रिज मोहन के संबंधों के बारे में पूछने पर, स-धन के कार्यकारी संचालक पिल्लारीसेत्ती सतीश ने ईमेल में कहा: “ब्रिज मोहन किसी भी संस्था के पूर्णकालिक कर्मचारी नहीं हैं। वह [इन संस्थाओं] के स्वतंत्र संचालक/ स्वतंत्र बोर्ड सदस्य हैं। वे जिन संस्थाओं से संबंधित हैं वो सभी संस्थाएं देश में समावेशी वित्त के व्यापक लक्ष के लिए कार्य करती हैं, इसलिए स्वतंत्र संचालक/ स्वतंत्र बोर्ड सदस्य के रूप में इन संस्थाओं में उनके योगदान के बारे में कोई भी समस्या नहीं है।”
नाबार्ड में बरुआ के पद के बारे में बार-बार पूछे गए सवालों पर सतीश जी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
कार्यकारी संचालक सतीश जी नाबार्ड में प्रमुख जनरल मैनेजर थे। कार्यकारी संचालक को स-धन के बोर्ड में कोई पद नहीं है।
अरुणाचलम जी ने स-धन के बोर्ड के बारे में कहा: “स-धन का बोर्ड परिपूर्ण नहीं है। लेकिन उनके पास विनियामक आरबीआई का प्रतिनिधि है यह बात अधिक निष्पक्षता का संकेत देती है।”
अरुणाचलम जी ने आगे बताया कि इन क्षेत्रों के कमजोर शासन के बारे में आरबीआई को पता है, लेकिन वह खुद भी विश्वसनीयता के संकट से परेशान है। उन्होंने पूछा “क्या आरबीआई [स्व-नियामक संगठनों] द्वारा प्रस्तुत रिपोर्टों की यथार्थता सुनिश्चित कर सकता है?” हाल ही के वर्षों में, आरबीआई के कमजोर पर्यवेक्षण, पारदर्शिता की कमी और संदेहास्पद ऋण की जांच में विफलता के बारे में आरबीआई पर सवाल उठाए गए हैं। आरबीआई ने ग्लोबल ग्राउंड मिडिया द्वारा प्रतिक्रिया देने के बार-बार किए हुए अनुरोधों का कोई जवाब नहीं दिया है।
आरबीआई द्वारा डिफाल्टरों के नाम प्रदान न किए जाने के लिए आरबीआई के खिलाफ केंद्रीय सुचना आयोग के मामले में, आरबीआई ने कहा कि “ग्राहक और आरबीआई के बीच गोपनीयता” के कारण वह नाम प्रदान नहीं कर सकते और मांगी हुई जानकारी न केवल जान-बूझकर बने डिफाल्टरों के बारे में होगी बल्कि आर्थिक संकट में फसें उधारकर्ताओं से भी संबंधित होगी। यह मामला मुंबई उच्च न्यायालय में अनिर्णीत है।
लक्ष्य का बुखार
माइक्रोफाइनांस में शासन चिंता का विषय बना हुआ है लेकिन आम लोगों के बीच की हकीकतें भी परेशान करने वाली हैं।
मोईन काझी, जिन्होंने बैंक और माइक्रोफाइनांस कंपनियों में काम किया है, और विकास क्षेत्र में चालीस साल बिताए हैं, वे माइक्रोफाइनांस क्षेत्र के बारे में आम तौर पर कहते हैं: “लोगों के बीच हालात बहुत ख़राब हैं। ऋण अधिकारीयों को उधारकर्ताओं को के साथ पर्याप्त रूप से परामर्श करना चाहिए लेकिन उन्हें बहुत बड़े लक्ष्य दिए जाते हैं। इस प्रक्रिया में आवश्यक परिश्रम को नजरअंदाज किया जाता है। क्या एमएफआईज गरीबों की सेवा कर रहे हैं या उनसे मुनाफ़ा कमा रहे हैं?”
जब एमएफआईज अपने ऋण के पोर्टफोलियो का विस्तार करते हैं तब ऋण अधिकारीयों को अधिक ग्राहक प्राप्त करने और ऋण की वसूली सुनिश्चित करने के दबाव का सामना करना पड़ता हैं। समावेशी वित्त इंडिया रिपोर्ट २०१८ इस बात की और इशारा करती है कि, ग्राहकों की संख्या और संचलन किए जानेवाले पोर्टफोलियो के विस्तार के संदर्भ में ऋणअधिकारीयों पर बढ़ते कार्यभार की चिंता के विषय पर एमएफआईज के द्वारा पूरी तरह से चर्चा नहीं की गई हैं।
अमूल्य कृष्णा चम्पातिराय, जो वित्तीय समावेशन में कार्य कर रहे हैं और माइक्रोफाइनांस पर काम करनेवाले अनुसंधान संगठन आईएफएमआर लीड में प्रशिक्षण और कार्यशालाओं का नेतृत्व करते हैं, उनका कहना हैं कि, एमएफआईज ने हर संकट से कुछ सिखा हैं, लेकिन जहां तक ग्राहकों का सवाल हैं, उन्हें अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है।
हालांकि माइक्रोफाइनांस के वकील सब कुछ अच्छा चल रहा है ऐसा दिखाने की कोशिश करते हैं, लेकिन इस क्षेत्र और विनियामकों की बारीकी से जांच करने पर यह सूचित होता है कि कुछ एमएफआईज गरीबों की आर्थिक सहायता करने की कोशिश करती हैं लेकिन चेतावनी के संकेत बार-बार मिलते हैं और २०१० के आंध्रप्रदेश संकट की वजह बने मुद्दे इस क्षेत्र की परेशानी अभी भी बढ़ा रहे हैं।
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Article by Urvashi Sarkar.
Editing by Mike Tatarski and Anrike Visser.
Research by Peter Allen Clark.
Illustrations by Imad Gebrayel.
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