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गरीबों की सेवा करना या उनसे मुनाफ़ा कमाना?

क्या एमएफआई और विनियामकों ने उनके द्वारा अतीत में की हुई गलतियों से कुछ सिखा हैं? (भाग १)

17 July 2019

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माइक्रोफाइनांस संस्थाएं तेजी से बढ़ रहे हैं और इसके कारण सीमा से अधिक उधारी देने की चिंता नए सिरे से बढ़ रही है।

२००६ में, आंध्रप्रदेश के कृष्णा जिले में माइक्रोफाइनांस संस्थाओं से उधार लिए उधारकर्ताओं की आत्महत्या की घटनाएं इस बात का संकेत थी कि भारत के माइक्रोफाइनांस क्षेत्र में मुसीबतों का प्रारंभ हो गया है। २०१० में कृष्णा संकट व्यापक होता गया और आंध्रप्रदेश के अन्य हिस्सों में भी फ़ैल गया।

माइक्रोफाइनांस का अर्थ है बिना किसी जमानत के गरीबों को छोटी सी राशी का ऋण देना। अच्छे पुनर्भुगतान के दरों का लाभ उठाते हुए, यह निवेश की संधि बन गया और वर्ष २००० के दौरान भारत में तेजी से बढ़ने लगा।

२००८ और २००९ में, भारत में माइक्रोफाइनांस संस्थाओं (एमएफआईज) के ऋण का पोर्टफोलियो ख़तरनाक गति से ९७ प्रतिशत तक बढ़ा। २०१० में, उधारकर्ताओं के आत्महत्या के बढ़ते मामलों८० से भी अधिकऔर बड़े पैमाने पर डिफाल्ट के मामलों नेमाइक्रोफाइनांस के बुलबुले को फोड़ा 

आंध्रप्रदेश के लगभग . दशलक्ष उधारकर्ताओं ने उनके ऋण का भुगतान नहीं किया। इस माइक्रोफाइनांस संकट की तुलना अमेरिका के सबप्राइम उधार से की गई जिसने २००८ के वैश्विक आर्थिक संकट को जन्म दिया था।

विकास के चिंताजनक संकेत

प्रमुख भारतीय माइक्रोफाइनांस उद्योग संगठन, माइक्रोफाइनांस इंस्टीट्यूट्स नेटवर्क (एमएफआईएन) का डेटा यह दर्शाता है कि यह सेक्टर फिर से बढ़ रहा है।

२०१० के संकटने एमएफआई का विस्तार धीमा कर दिया था। एमएफआई को ऋण देनेवाले बैंकों के निवेश कम हो गए, और चुकाए हुए ऋण भी बढ़ते गए। अक्तूबर २०१० में, आंध्रप्रदेश सरकार ने एक अध्यादेश पारित किया, जिसे उसी साल कानून में परिवर्तित किया गया और इसके द्वारा एमएफआई पर कई प्रतिबंध लगाए गए, जैसे कि, अनियंत्रित तरीके से कई ऋण देना कम किया गया और ऋण की वसूली के तरीकों को नियंत्रित किया गया। लेकिन जब पिछले वर्ष की तुलना में २०१५२०१६ में जब एनबीएफसीएमएफआईज ने शेष ऋण में ८४ प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की तब इसका विकास फिर से शुरू हुआ।

नवंबर २०१६ में, भारतीय अर्थव्यवस्था के विमुद्रीकरण के दौरान, जब ५०० और १००० रुपये के नोटों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया था, तब विकास की गति थोड़ी कम हो गयी थी जिस कारण सकल ऋण पोर्टफोलियो और ग्राहकों की संख्या में गंभीर गिरावट आई। २०१६२०१७ के अवधि के दौरान एनबीएफसीएमएफआईज की सालदरसाल की वृद्धि केवल २५ प्रतिशत थी, जबकि पूरे माइक्रोफाइनांस उद्योग में केवल २६ प्रतिशत वृद्धि हुई।

बाहरी परिस्थितियों के कारण कुछ समय तक धीमे पड़ने के बाद, नवीनतम एमएफआईएन के डेटा के अनुसार २०१७२०१८ में एनबीएफसीएमएफआईज में ५० प्रतिशत वृद्धि और २०१८१९ में ४७ प्रतिशत वृद्धि के साथ फिर से तेजी से विकास हो रहा है।

दिसंबर २०१८ के एमएफआईएन के माइक्रोमीटर रिपोर्ट के अनुसार, ३७ प्रतिशत के साथ एनबीएफसीएमएफआईज माइक्रोफाइनांस के सबसे बड़े प्रदाता हैं, और ३२ प्रतिशत के साथ बैंक दुसरे स्थान पर हैं।

स्वयं सहायता समूहों (एसएचजीज) को छोड़कर, एमएफआईएनज के ५६ सदस्य एनबीएफसीएमएफआईज भारतीय माइक्रोफाइनांस क्षेत्र का ९० प्रतिशत हिस्सा हैं, जो बैंकों से ऋण प्राप्त करते हैं।

फिर से बढ़ रही वृद्धि की वजह से, विशेषज्ञ को चिंता हो रही है कि सीमा से अधिक ऋण देने की पुरानी प्रथा अभी विलुप्त नहीं हुई हैं।

संकट के बाद विनियाम गलतियां

२०१० के माइक्रोफाइनांस संकट के वजह से रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया (आरबीआई) को हस्तक्षेप करना पड़ा और इस क्षेत्र को अधिक कठोरता से नियंत्रित करना पड़ा। २०११ के मालेगाम समिति रिपोर्ट में, माइक्रोफाइनांस में कार्य कर रहे एनबीएफसीज को नियंत्रित करने के लिए गैरबैंकिंग वित्तीय कंपनियों की नई श्रेणी, गैरबैंकिंग वित्तीय कंपनीजमाइक्रोफाइनांस संस्थाओं (एनबीएफसीएमएफआईज), का निर्माण किया किया गया।

कई बार ऋण देना, सीमा से अधिक ऋण देना और नकली उधारकर्ता यानि वास्तविक लाभार्थी के बजाय किसी अन्य व्यक्ति ऋण देना जैसे मामलों पर प्रतिबंध लगाने के लिए समिति ने दिशानिर्देश बनाए। 

साथ ही, समिति ने ऋण वसूली के किन तरीकों को बलपूर्वक समझा जाएगा, यह दोहराया। जैसे कि मासिक पुनर्भुगतान के बजाय साप्ताहिक भुगतान वसूल करना, (भले ही आरबीआई ने आधिकारिक तौर पर साप्ताहिक पुनर्भुगतान की अनुमति दी है) समितिने क्रेडिट ब्युरोज स्थापित करने के आदेश भी दिए है।

उद्योग संस्थाएं, एमएफआईएन और धन को क्रमशः २०१४ और २०१५ में स्वयंनियंत्रित संगठन (एसआरओज) के रूप में मान्यता मिली। उन्होंने एनबीएफसीएमएफआईज के लिए आचारसंहिता बनाई और उसका अनुपालन हो इस बात को सुनिश्चित करना शुरू किया। लेकिन, आरबीआई के दिशानिर्देशों का अनुपालन करने की मुख्य जिम्मेदारी हर एमएफआईज पर गई। इस दौरान, स्वयंनियंत्रित संगठनों को आरबीआई को सभी क्षेत्रों के विकास के बारे में जानकारी देना, जांच करना और तिमाही रिपोर्ट प्रस्तुत करने का काम सौपा गया था।

ग्लोबल ग्राउंड मीडिया के साथ बातचीत और ईमेल संभाषणों के दौरान, आरबीआई के नियामक कारवाई के बावजूद एमएफआईएन और धन के प्रतिनिधियों ने २०१० के आंध्रप्रदेश के संकट के लिए एमएफआईज को जिम्मेदार नहीं ठहराया।

एमएफआईएन

ग्लोबल ग्राउंड मिडिया को भेजी गयी ईमेल प्रतिक्रिया में एमएफआईएन के सीईओ, हर्ष श्रीवास्तव जी ने कहा कि, एनबीएफसीएमएफआई उद्योगों को जिम्मेदारी से ऋण देने का पालन करते हुए और ग्राहक संरक्षण प्रदान करते हुए आगे बढ़ना होगा। श्रीवास्तव के अनुसार, एनबीएफसीएमएफआईज के १५ प्रतिशतवर्तमान ऋण गहराईके साथ बाजार में इसकी व्याप्ति काफी हद तक कम है।

एमएफआईएन्स के स्वयंनियंत्रित संगठन समिति के अध्यक्ष प्राध्यापक अलोक मिश्रा जी ने कहा: “प्रयोजन के उल्लंघन के लिए गंभीर कारवाई की जाए ऐसे कार्य अस्तित्व में नहीं हैं।

लेकिन, इसी प्राध्यापक मिश्रा जी की एमएफआईएन की जिम्मेदार वित्त इंडिया रिपोर्ट (२०१६) में कहा गया है कि, “फिल्ड स्टाफ सदस्य ज्यादा राशी का ऋण लेने के लिए दबाव डालना जारी रखा हैं, और क्रेडिट ब्यूरो के जांच के बावजूद काफी हद तक अनेक ऋण देना जारी है।

रिपोर्ट में यह भी सूचित किया है कि, “क्रेडिट ब्यूरो की रिपोर्ट्स में गंभीर कमियां थी, जैसे कि डेटा का सत्यापन, और कुछ मामलों में उधारकर्ता के कर्जदारी की पूरी जानकारी प्रदान करने में असफलता।

हाल ही में, प्रोफेसर मिश्रा और विकास सलाहकार अजय तनखा द्वारा संकलित समावेशी वित्त भारत रिपोर्ट २०१८ में भी मुसीबत बननेवाली प्रवृतियों पर रोशनी डाली है। रिपोर्ट में एमएफआईज के द्वारा तृतीयपक्ष के उत्पादों के जबरदस्ती से होनेवाले खुदरा व्यापार पर भी ध्यान दिया गया है, जिस पर एमएफआईएन्ज ने प्रतिक्रिया दी कि उन्होंनेतृतीय पक्ष उत्पादों के लिए आदेशजारी किए हैं जिसमें अपराधियों के खिलाफ दंडात्मक कारवाई शामिल नहीं है। 

धन

छोटे या मध्यम आकार के एनबीएफसीएमएफआईज और एनजीओ जिसके सदस्य हैं ऐसे धन संस्था के कार्यकारी संचालक पिल्लारीसेती सतीश जी ने कहा कि, “सदस्य संस्थाओं को आचार संहिता का प्रशिक्षण मिलता हैं, आचारसंहिता के पालन के लिए उनका ऑडिट होता हैं और निगरानी संघ के अधीन होता हैं। इसमें एक शिकायत निवारण प्रणाली भी होती हैं” 

२०१८ में, धन ने केरला के पलक्कड जिले में माइक्रोफाइनांस के ऋणों के कारण होनेवाली आत्महत्याओं की रिपोर्ट के बाद इसमें हस्तक्षेप किया। उस समय न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने बताया था कि, माइक्रोफाइनांस कंपनियों से लोन लेने के बाद और उसे चुकाने के लिए दबाव डालने पर तीन व्यक्तियों ने आत्महत्या कर ली थी

केरल में आत्महत्या के बाद भी एमएफआई को किसी कारवाई का सामना नहीं करना पड़ा। इसके बजाय सतीश जी ने कहा कि, धन ने पल्लकड के एनबीएफसीएमएफआईज के कर्मचारियों को सीमा से अधिक ऋण लिए हुए ग्राहकों से कैसे निपटना चाहिए और बलपूर्वक कारवाई करने से परहेज कैसे करना चाहिए इसके लिएपरामर्श प्रदान किया

सतीश जी ने कहा कि, उस इलाके में एमएफआईज और साहूकार दोनों भी मौजूद थे। उन्होंने कहा, “हमने एमएफआईज के खिलाफ विशिष्ट कारवाई नहीं की क्योंकि, एमएफआईज ने व्यक्तियों के दिए हुए ऋण उनके सीमा के अनुसार थे। लेकिन उधारकर्ताओं ने खुद कई संस्थाओं से उधार लिए थे। इसलिए तकनीकी तौर पर एमएफआई गलत नहीं है।बाद में, सतीशजी ने ग्लोबल ग्राउंड मिडिया के सामने स्वीकार किया कि, क्रेडिट रेटिंग ब्यूरो द्वारा संभावित ग्राहकों की जांच करके एमएफआईज को यह पता लगाना चाहिए कि ग्राहक कर्जे में डूबा हुआ हैं या नहीं। 

आरबीआई ने ऋण के सीमाओं की जांच की जिम्मेदारी एनबीएफसीएमएफआईज पर डाली हैं, ग्राहकों पर नहीं। आरबीआई के नियम के अनुसार जिन ग्राहकों ने दो एनबीएफसीएमएफआईज से ऋण लिया है और पहले से ,००,००० रुपयों तक का ऋण है ऐसे ग्राहकों को लोन देने से मनाई करता है। नियमों के अनुसार एनबीएफसीएमएफआईज को क्रेडिट ब्यूरो में शामिल होने की जरूरत हैं, जिनके जरिए उन्हें ग्राहक के ऋण की जांच करनी चाहिए और उनके खुद के ग्राहकों के ऋण का विवरण भी देना चाहिए।   

सरकारी निष्कर्ष

नवंबर २०१६ में विमुद्रीकरण के दौरान, एनबीएफसीएमएफआईज पर फिर से ऋण की वसूली के लिए बलपूर्वक तरीकों के इस्तेमाल करने के आरोप लगे थे। महिला उधारकर्ताओं द्वारा विरोध दर्शाने के बाद और नागपुर तथा अमरावती में कंपनियों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज किए जाने पर, अप्रैल २०१७ में महाराष्ट्र सरकार ने पूर्वी महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में, जिसमे नागपुर और अमरावती प्रभाग शामिल है, माइक्रोफाइनांस द्वारा दिए गए जमानतमुक्त ऋण की जांच के लिए एक समिति बनाई। समिति ने मई २०१८ में अपनी रिपोर्ट सरकार को प्रस्तुत की। समिति की रिपोर्ट, जो ग्लोबल ग्राउंड मिडिया को प्राप्त हुई है, मानती है कि माइक्रोफाइनांस संस्थाएं जरूरतमंदों और अल्प आय समूहों के वित्तपोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं लेकिन माइक्रोफाइनांस कंपनियों द्वारा दुर्व्यवहार किए जाने के कई उदाहरण हैं, जैसे कि एक ही लाभार्थी को कई ऋण देना। एक मामले में, एक ही उधारकर्ता ने एक ही समय पर अलगअलग माइक्रोफाइनांस संस्थाओं से छह से आठ ऋण प्राप्त किए थे।

रिपोर्ट के अनुसार, एनबीएफसीएमएफआईज का प्रमुख उद्देश्य मुनाफा कमाना था। उन्हें ग्रामीण महिलाओं के कौशल्या विकास या कुटीर उद्योगों के विकास की कोई परवा नहीं थी

इस दौरान, एनबीएफसीएमएफआईज का व्याजदर २२ और २६ प्रतिशन के बीच था, जो आरबीआई द्वारा मान्य सीमा के भीतर है। यह व्याजदर बैंकिंग क्षेत्र के दर से ज्यादा हैं। बैंकिंग क्षेत्र के व्याजदर औसत से १० प्रतिशत होते है।

रिपोर्ट के लेखकों ने आरबीआई से एमएफआईज पर निगरानी बढ़ाने, २०११ मालेगाम समिति के सिफारिशों के कार्यान्वयन को प्रभावी रूप से सुनिश्चित करने, २० प्रतिशत तक उचित ब्याज दरों के गारंटी देने, एक ही उधारकर्ता को कई ऋण वितरित करने और उधारकर्ताओं को बीमा प्रदान करने की मांग की।

रिपोर्ट में किए आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए, एमएफआईएन के प्रवक्ता ने ग्लोबल ग्राउंड मिडिया को बताया कि, “महाराष्ट्र सरकार ने…..माइक्रोफाइनांस कंपनियों द्वारा किए जानेवाले अच्छे कामों को भी रेकॉर्ड में शामिल किया हैं साथ ही, उन बातों पर रोशनी डाली हैं जिन में सुधार की जरूरत हैं।

फिर भी, माइक्रोफाइनांस उद्योग की रिपोर्ट्स और महाराष्ट्र सरकार समिति के निष्कर्षों में सीमा से अधिक लोन देने, वसूली की बलपूर्वक तकनीके और ग्राहकों की लोन लेने की क्षमता का आकलन करने की कमी पर जोर दिया गया हैं।

If you need help or know someone who does, please reach out now through a suicide hotline near you.

Article by Urvashi Sarkar.
Editing by Mike Tatarski and Anrike Visser.
Research by Peter Allen Clark.
Illustrations by Imad Gebrayel.

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